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डीएमएफ में हजारों करोड़ होने का बावजूद आदिवासी बदहाल

जगदलपुर। बैलाडीला की पहाड़ियों से लौह अयस्क का उत्खनन कर राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (NMDC) ने लाखों करोड़ का मुनाफा कमाकर स्वयं नव रत्न कंपनी का गौरव प्राप्त कर लिया है, लेकिन इसका खामियाजा स्थानीय आदिवासी लोगों और बस्तर के पर्यावरण को चुकाना पड़ रहा है।

आलम यह है कि 50 सालो से एनएमडीसी द्वारा किए जा रहे उत्खनन के कारण बैलाडीला की पहाड़ियों से निकली शंखनी नदी पूरी तरह से प्रदूषित हो गई है। सैकड़ों एकड़ खेती बंजर हो गई है। लाखों की संख्या में काटे गए हरे-भरे वृक्षो के कारण इलाके का पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हुआ है। बैलाडीला के परिक्षेत्र में आदिवासियों को मूलभूत सुविधाओ का आभाव है, उन्हें शुद्ध पेयजल भी उपलब्ध नहीं होता है।

उत्खनन के प्रभाव को कम करने के लिए शासन ने वर्ष 2015 में डीएमएफ और सीएसआर मद के माध्यम से बड़ी धनराशि उपलब्ध करवा रही है। इस राशि का उपयोग प्रभावित इलाके के विकास और प्रभावितो की मदद के लिए किया जाना था। वर्ष 2015 से 2021 तक के लिए छत्तीसगढ़ को 7127 करोड़ की राशि डीएमएफ के लिए मिली है, पर राजनेताओं, भ्रष्ट अफसरों, सप्लायर और ठेकेदारों की डीएमएफ पर बुरी नज़र लग गई है।

इस राशि से न तो प्रभावित इलाके का विकास हुआ और न ही प्रभावित आदिवासियों को कोई परोक्ष मदद ही मिली उल्टा अधिकांश राशि अनुपयोगी कार्यो और वास्तविक प्रभावित क्षेत्र से बाहर खर्च की गई है। सिर्फ बस्तर ही नही बल्कि छग के दर्जन भर से अधिक जिलो में इस राशि की जमकर बंदरबांट हुई है। यदि इस मामले को लेकर कोई बड़ी जांच हो जाए तो घोटालो की लंबी फेहिस्त निकल सकती है।

डीएमएफ को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार की नीति पारदर्शी नहीं
रिच लैंड, पुवर पीपुल का विरोधाभास खत्म करने के लिए बने डीएमएफ को लेकर राज्य सरकार की नीति अस्पष्ट और विरोधाभासी है। मसलन केंद्र सरकार के निर्देश पर वर्ष 2015 में छत्तीसगढ़ सरकार ने जिलों में जो डीएमएफ की कमेटियां गठित की, उनकी कमान सम्बन्धित जिलों के कलेक्टरों को दी गई थी। क्षेत्र के सांसद एवं अन्य समितियों के सदस्य बनाए गए थे किन्तु 2018 में राज्य में सरकार बदलने के बाद नई सरकार ने कलेक्टरों को हटाकर डीएमएफ की कमान प्रभारी मंत्रियों को सौप दी।

2021 में केंद्र की आपत्ति के बाद पुनः कमेटियों में परिवर्तन कर कलेक्टरों को अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन तब तक सैकड़ो करोड़ का फूंके जा चुके थे। खनन प्रभावित क्षेत्रों में आदिवासियों के बीच वर्षो से काम कर कर रही संस्था संकल्प के डायरेक्टर सुधांशु कहते हैं कि डीएमएफ का दुरुपयोग हो रहा है। इस फंड से नेता, अफसर और ठेकेदार तो मालामाल हो रहे हैं, पर यह योजना जिन खनन प्रभावित के लिए बनी है उसे कोई लाभ नही मिल रहा है। (पत्रिका)

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