लंदन। यह कहानी पूर्वी सिंहभूम जिले (झारखंड) के अजय हेम्ब्रम की है, जिन्होंने उच्च शिक्षा का ख्वाब देखा था। भारत में शिक्षा तक तो ठीक था, लेकिन एक दिन इंटरनेट पर उन्हें कुछ विदेशी विश्वविद्यालयों के बारे में जानकारी मिली, जहां से वे अपनी मास्टर्स की डिग्री लेना चाहते थे। लेकिन, एक साधारण आदिवासी परिवार के इस छात्र के लिए शायद ऐसा सोच पाना भी मुश्किल था।
लेकिन, वो कहावत है ना :
मंजिल उन्हें मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है,
पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।
इस सपने को हकीकत में बदलने की जद्दोजहद के बीच उन्हें झारखंड सरकार की “मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा पारदेशीय छात्रवृत्ति योजना” के बारे में पता चला। उन्होंने इसके लिए आवेदन किया, लेकिन गाँव में उनके दोस्तों को अब भी यह “सपना” असंभव ही लगता था। रांची में आदिवासी कल्याण विभाग की टीम ने इन्हेँ इंटरव्यू के लिए बुलाया, और इनके जुनून को देखते हुये, इनका चयन उन छात्र-छात्राओं की लिस्ट में हो गया, विदेशों में जिनकी पढ़ाई का पूरा खर्च सरकार उठाती है।
कुछ हफ्तों बाद, पहली बार एक इंटरनेशनल फ्लाइट में बैठा यह छात्र, शायद उस वक्त भी यह विश्वास करने की स्थिति में नहीं था कि विदेशों में पढ़ने का उसका सपना पूरा हो रहा है। जब सरकार उसकी मदद के लिए सामने आई, तो उसने भी एयरपोर्ट पर छोड़ने आये अपने माता-पिता से वादा किया कि इस मौके का सदुपयोग करूंगा, और अपने परिवार तथा राज्य का नाम रौशन करूंगा।
लंदन में एक अलग माहौल, और उतनी बड़ी यूनिवर्सिटी के कैंपस में पहले तो उसे घबड़ाहट हुई, लेकिन फिर उसे वहां पहले से पढ़ रहे झारखंड के छात्रों का साथ मिला। कई दोस्त बने, फिर हर हफ्ते घर पर बातें करते समय अपने परिजनों को हफ्ते भर की गतिविधियों के बारे में बताता। धीरे-धीरे उस माहौल में ढलते हुए, जब कोर्स पूरा हुआ, और उसे “डिस्टींक्शन” के साथ डिग्री मिली, तो उसकी आँखों में आंसू थे।
इसी मंगलवार को दीक्षान्त समारोह के बाद, जब उसने तस्वीरें घर पर भेजी, तो उसके पिता श्री बंगाल हेम्ब्रम का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। अश्रुपूरित नेत्रों से उसकी माँ श्रीमती रत्नी हेम्ब्रम ने “मरांग बुरु” को धन्यवाद दिया। जमशेदपुर से करीब 15 किलोमीटर दूर, भारत के पहले यूरेनियम माइंस के लिए प्रसिद्द उसके गाँव भाटिन (पोटका प्रखंड) से शायद कोई पहली बार विदेश गया है, और अजय की उपलब्धि पर हर ग्रामीण को गर्व है।
आदिवासी डॉट कॉम से बातचीत में अजय भावुक हो गए – “हम लोग तो शायद इस बारे में कभी सोच ही नहीं पाते। इस डिग्री के लिए मेरे माता-पिता, दोस्तों व यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों को धन्यवाद देना चाहूंगा।”
“… लेकिन इसका श्रेय वास्तव में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सर और आदिवासी कल्याण मंत्री चंपई सोरेन सर को जाता है, जिन्होंने हम जैसे छात्रों को वैश्विक मंच पर छा जाने का हौसला दिया। सौ साल पहले मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा जी लंदन आये थे, और आज उनके पदचिन्हों पर चल कर, हम लोग यहां के लोगों के बीच अपने समाज, अपने राज्य एवं अपने देश की बेहतर छवि बनाने का प्रयास कर रहे हैं।”
लंदन के अनुभव के बारे में अजय बताते हैं- “शुरुआत में थोड़ी घबड़ाहट होती थी, लेकिन जल्द ही यहां के माहौल में घुलमिल गया. यहां आकर यह पता चला कि हमारे देश में शिक्षा का स्तर भी काफी बढ़िया है और थोड़े से प्रयास के बाद, कोइ भी छात्र यहां बेहतर प्रदर्शन कर सकता है। वैसे भी, जब देश से इतनी दूर पढ़ने आये हैं, तो फिर यहाँ मेहनत करना बनता है।”
भविष्य की योजनाओं के बारे में अजय ने बताया कि फिलहाल लंदन में एक साल की इंटर्नशिप करना है, उसके बाद जहाँ किस्मत ले जाये। लेकिन वे एक बात जोड़ना नहीं भूलते – “झारखंड का बहुत कर्ज है हमारे ऊपर, ईश्वर ने चाहा और मौका मिला, तो कभी ना कभी, राज्य के लिए कुछ ना कुछ जरूर करूँगा। जय झारखंड।”