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मानव तस्करी की शिकार हो रही हैं आदिवासी बच्चियां !

रांची। वैसे तो झारखंड के निर्माण का मुख्य उद्देश्य ही आदिवासियों का कल्याण था, और अधिकतर समय इनके मुख्यमंत्री भी इसी समुदाय से आते रहे हैं, लेकिन अपनी स्थापना के दो दशकों बाद, अगर यह राज्य अपने मूल उद्देश्य से भटका हुआ दिख रहा है, तो इसका जिम्मेदार कौन है?

अभी हाल में ही गुरुग्राम में काम कर रही एक आदिवासी लड़की का मामला चर्चा में था, जिसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संज्ञान लेकर झारखंड पुलिस तथा जिला प्रशासन को कार्यवाही करने को कहा था। इस लड़की को तो बचा लिया गया, लेकिन मानव तस्करों के चंगुल में फंसी हर लड़की इतनी सौभाग्यशाली नहीं होती।

एक दैनिक अखबार में छपी यह रिपोर्ट उन सभी सरकारों को आईना दिखाती है, जिन्होंने कहने को तो आदिवासियों के कल्याण के लिए कई योजनाएं बनाईं, लेकिन धरातल पर उतरने से पहले, शायद उन योजनाओं पर पूजा सिंघल और रविंद्र राम जैसे भ्रष्ट्र अधिकारियों की कुदृष्टि पड़ गई। यह अध्ययन भले 2018-19 का हो, लेकिन इतने वर्षों बाद भी, राज्य की आदिवासी लड़कियों की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है।

कहाँ जा रही हैं आदिवासी लड़कियां?
झारखंड से मानव तस्करी का शिकार होने वाली बच्चियों को सबसे ज्यादा दिल्ली, हरियाणा और पंजाब पहुंचाया जाता है। इसके अलावा इन्हें पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार और असम भी भेजा जाता है। हरियाणा और पंजाब में ये बच्चियां जबरन शादी के लिए बेची जाती हैं जबकि दिल्ली और अन्य राज्यों में इनकी ट्रैफिकिंग घरेलू काम और कृषि कार्यों के लिए की जाती है। इन राज्यों में इन्हें प्लेसमेंट एजेंसियों के माध्यम से खरीदा-बेचा जाता है।

उत्तर प्रदेश में कालीन उद्योग के लिए झारखंड के बच्चों की काफी तस्करी हुई है। मानव तस्करी की शिकार इन बच्चियों में 90 फीसदी आदिवासी समाज और 10 फीसदी दलित समुदाय से आती हैं।

झारखंड से मानव तस्करी (ह्यूमन ट्रैफिकिंग) को लेकर यह जानकारी डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान (टीआरआई) द्वारा कराए गए शोध में मिली है। टीआरआई के लिए यह शोध मानव तस्करी पर काम करने वाली संस्था बाल कल्याण संघ ने किया है। जारी रिपोर्ट के अनुसार मानव तस्करी की शिकार इन बच्चियों में 30 फीसदी हाई स्कूल तक पढ़ी होती हैं जबकि 30 फीसदी मीडिल और 14 फीसदी प्राइमरी पास। इनमें 26 फीसदी अशिक्षित हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश के कालीन उद्योग में पलामू-गढ़वा जिले के 11 हजार बाल मजदूर कार्यरत हैं।

नक्सली और विस्थापन ट्रैफिकिंग की बड़ी वजह
इस रिपोर्ट के अनुसार नक्सली संकट और खनन क्षेत्रों में विस्थापन मानव तस्करी की बड़ी वजह रही। खूंटी में ऐसे कई मामले सामने आए जिसमें नक्सलियों से तंग महिलाएं मानव तस्करों के चंगुल में फंस गईं। धनबाद में कोयला उठाने का काम बिहार व यूपी के लोगों को मिल रहा है। इसके कारण स्थानीय महिलाएं रोजगार से वंचित हो रहीं हैं।

रिपोर्ट के अनुसार अवैध कोयला कारोबारी स्थानीय महिलाओं को वेश्यावृति में धकेलते हैं। इससे बचने के लिए वे खुद को मानव तस्करों के हवाले कर देतीं हैं। यह अध्ययन 2018-2019 सत्र के लिए कराया गया था। इसे बीकेएस के सचिव संजय मिश्रा के मार्गदर्शन में किया गया। इसमें बाल कल्याण समिति आदि के आंकड़ों का भी अध्ययन किया गया है। (हिन्दुस्तान से इनपुट के साथ)

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