झारखंड में फिलहाल आदिवासी हो भाषा की संवैधानिक मान्यता को लेकर राजनैतिक माहौल गर्म है। इसी महीने, 14 सितंबर को इस से संबंधित सैकड़ों आंदोलनकारियों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दिया, उसके दो दिन बाद पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने एक पत्र लिख कर, हो भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की।
अगले दिन खबर आई कि हो भाषा आंदोलन से जुड़े एक प्रतिनिधिमंडल ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर, हो भाषा की संवैधानिक स्वीकृति हेतु एक पत्र उन्हें सौंपा है। उसके बाद आनन-फानन में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की टीम एक्टिव हुई तथा उन्होंने दावा किया कि उन्होंने 2020 में ही ऐसा एक पत्र लिखा था, जिसमें हो भाषा के साथ साथ मुंडारी एवं कुडुख/ उरांव भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की गई थी।
फिर सोशल मीडिया पर श्रेय लेने के लिए आरोप- प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हो गया। लेकिन क्या आप इस आंदोलन की सफलता के पीछे की कहानी जानते हैं? हो भाषा को इस मुकाम तक पहुँचाने के पिछे किसका योगदान रहा?
दरअसल पिछले कई वर्षों से हो समाज वारंग क्षिति लिपि के आविष्कारक ओत गुरु कोल लको बोदरा जी की जयंती के समय “हो भाषा आंदोलन” को लेकर गतिविधियां तेज करता रहा है। कोल्हान क्षेत्र के बड़े नेता होने की वजह से, हर बार इस आंदोलन को चम्पाई सोरेन का भरपूर सहयोग मिलता रहा है।
तो इस बार भी, सितंबर के पहले हफ्ते में ‘आदिवासी हो समाज युवा महासभा” तथा “ऑल इंडिया हो लैंग्वेज एक्शन कमिटी” के प्रतिनिधिमंडल ने सरायकेला-खरसावां के जिला परिषद अध्यक्ष सोनाराम बोदरा के नेतृत्व में चम्पाई सोरेन से संपर्क साधा। सैकड़ों की संख्या में ये लोग जंतर-मंतर पर जाकर आंदोलन करना चाहते थे।
पूर्व सीएम ने इनके आने- जाने, दिल्ली में ठहरने तथा भोजन-पानी का पूरा इंतजाम करवाया। ट्रेन में सीटें नहीं मिल रही थीं, तो अतिरिक्त डिब्बे भी जोड़वाये गए। उसके बाद, इस आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने के लिए गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात का समय लिया गया।
जमशेदपुर में 15 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी की सभा थी और उसके अगले दिन पूर्व सीएम चम्पाई सोरेन को पाकुड़ में “मांझी परगना महासम्मेलन” में शामिल होना था। पूर्व सीएम को हेलीकॉप्टर द्वारा पाकुड़ जाना था, जहां से कार्यक्रम के बाद, उन्हें देवघर एयरपोर्ट जाकर, वहां से विमान द्वारा दिल्ली पहुंचना था। लेकिन लगातार हो रही बारिश ने सारे प्लान पर पानी फेर दिया। दुमका के रास्ते सड़क मार्ग से पाकुड़ पहुंचे सोरेन देर शाम तक वहीं के कार्यक्रम में उलझे रह गए।
फिर यह तय हुआ कि पत्र को मीडिया में जारी कर दिया जाए तथा गीता कोड़ा समेत हो समाज के प्रतिनिधियों को गृह मंत्री से मिलवाने की जिम्मेदारी असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिश्व सरमा ने उठाई। गृहमंत्री ने मामले की गंभीरता को समझते हुए हो समाज को उनकी मांग पर विचार करते हुए सकारात्मक पहल का आश्वसन दिया।
इस प्रकार, झारखंड, ओडिशा, असम, छत्तीसगढ़ एवं बंगाल के कुछ हिस्सों में बोले जानी वाली यह भाषा अब भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने की दहलीज पर खड़ी है। इस सहयोग के लिए, इसी हफ्ते, लको बोदरा जयंती के दौरान आदिवासी हो समाज ने सार्वजनिक कार्यक्रम कर के, चम्पाई सोरेन के प्रति आभार जताया।