गांधीनगर। वैश्विक कोरोना महामारी में जहां रोजगार-धंधे ठप हैं। वहीं स्कूल-कालेज भी बंद हैं। ये संस्थान कब खुलेंगे। कोई ठिकाना नहीं है। ऐसे में गुजरात के 52 लाख विद्यार्थियों को मध्याह्न योजना का लाभ विलंब से मिलता है या फिर से वंचित रहते हैं। वहीं आदिवासी क्षेत्रों के 14 जिलों में पिछले पन्द्रह माह से दूध संजीवनी योजना बंद हालत में है। गुजरात प्रदेश कांग्रेस समिति के मुख्य प्रवक्ता मनीष दोशी ने भाजपा सरकार को घेरते हुए यह आरोप लगाए।
उन्होंने आरोप लगाया कि गुजरात के 14 जिलों की 52 तहसीलों की 8958 स्कूलों में 7,68,465 विद्यार्थी हैं, जो इस योजना के लाभार्थी हैं। ये सरकार की घोषणा है। सही मायने में देखा जाए तो पन्द्रह माह से कोरोना महामारी में अम्बाजी से उमरगांव तक आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों के लिए दूध संजीवनी योजना बंद है। बड़ी-बड़ी घोषणाएं करने वाली भाजपा सरकार ने आदिवासी बच्चों के मुंह से दूध का निवाला छीन लिया है। कोरोना महामारी में सबसे ज्यादा जिस योजना की आवश्यकता थी उसे ही बंद कर दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में वर्ष 2018 में 1,10,999 कुपोषित, वर्ष 2019 में 1,42,142 कुपोषित बच्चे और 27 फरवरी तक छहमाह में कुपोषित बचों की संख्या ३,86,840 हो गई है। अर्थात् छह माह में तीन गुना कुपोषित बच्चों की संख्या हो गई।