नई दिल्ली। साल 2019-20 के दौरान कक्षा 9 और 10 में पढ़ने वाले करीब एक-चौथाई आदिवासी बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया। हर पांच में से एक दलित स्टूडेंट भी पढ़ाई से दूर हो गया। इसके मुकाबले ‘सामान्य’ श्रेणी के हर नौ स्टूडेंट्स में से एक ने पढ़ाई छोड़ी। असम में तो एक-तिहाई से ज्यादा बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी। यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE) के डेटा से यह बात सामने आई है।
कक्षा 9 और 10 में ही सबसे ज्यादा बच्चों ने पढ़ाई से नाता तोड़ा। प्राइमरी लेवल पर ड्रॉपआउट का प्रतिशत काफी कम (5% से कम) है। अपर प्राइमरी लेवल पर ड्रॉपआउट का अनुमान अधिकतर राज्यों में 2% से कम रहा। हालांकि दलित और आदिवासी बच्चों में इन क्लासेज में स्कूल छोड़ने की दर ज्यादा है।
दिल्ली में स्कूल छोड़ने की दर देश से ज्यादा
पिछले साल कक्षा 9 और 10 में असम से सबसे ज्यादा (34.4%) बच्चों ने स्कूल छोड़ा। मध्य प्रदेश के 26.8% बच्चों ने इन कक्षाओं में पढ़ाई छोड़ दी जबकि गुजरात में 24.1 प्रतिशत। राजधानी दिल्ली में कक्षा 9 और 10 में स्कूल छोड़ने की दर (21.5%) राष्ट्रीय दर (16.1%) से ज्यादा रही। आदिवासी आबादी वाले राज्यों- मध्य प्रदेश और ओडिशा में सबसे ज्यादा आदिवासी बच्चों ने स्कूल छोड़ा। ओडिशा में 31.5% आदिवासी बच्चों और एमपी में 30.9% बच्चों ने 9-10 में स्कूल छोड़ दिया।
लड़कियों से ज्यादा लड़कों ने छोड़ा स्कूल
2019-20 में मिडल लेवल के अलावा प्राइमरी क्लासेज में स्कूल छोड़ने के मामले में लड़कियों की तुलना में लड़कों की संख्या ज्यादा रही। उच्च प्राथमिक कक्षाओं (6-8) में स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में अधिक थी। रिपोर्ट के मुताबिक, देश में माध्यमिक स्तर पर स्कूल छोड़ने की कुल दर 17 प्रतिशत से ज्यादा है। उच्च प्राथमिक कक्षाओं (6 से 8) पर यह दर 1.8 प्रतिशत और प्राथमिक स्तर पर 1.5 प्रतिशत है।
लड़कों की प्राथमिक कक्षाओं में स्कूल छोड़ने की दर 1.7 प्रतिशत जबकि लड़कियों की 1.2 प्रतिशत थी। इसी तरह माध्यमिक कक्षाओं में स्कूल छोड़ने की लड़कियों की दर 16.3 प्रतिशत जबकि लड़कों की दर 18.3 प्रतिशत रही।