रांची। झारखंड की राजधानी रांची के करमटोली में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आज केंद्रीय धुमकुड़िया भवन का शिलान्यास किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि केंद्रीय धुमकुड़िया भवन जनजातीय समाज की संस्कृति और परंपराओं के उत्थान का केंद्र बनेगा। धुमकुड़िया की परंपरा को पूर्वजों की धरोहर बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह भवन झारखंड की पहचान बनेगा। इस मौके पर विशिष्ट अतिथि के रूप में आदिवासी कल्याण मंत्री चंपई सोरेन, पूर्व मंत्री सुबोध कांत सहाय, विधायक बंधु तिर्की, विधायक राजेश कच्छप शामिल रहे।
सोरेन ने कहा – “आज हमसभी लोग इस क्षण के गवाह हैं। धुमकुड़िया भवन का जल्द उद्घाटन भी हो, इसी सोच के साथ सरकार आगे बढ़ रही है। धुमकुड़िया शब्द में बहुत कुछ रचा-बसा है। आदिवासी समुदाय में धुमकुड़िया में ही बैठकर सभी संस्कार तय किये जाते हैं तथा उन पर चर्चा एवं विचार-विमर्श किए जाते है। धुमकुड़िया की परंपरा और संस्कृति को अक्षुण्ण रखना हमसभी की जिम्मेदारी है।”
उन्होंने कहा कि पूर्वजों ने हमें सामाजिक तथा सांस्कृतिक धरोहरों से जोड़ा, आने वाली पीढ़ी को हम जोड़ें यह हम सभी की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने हमें अपनी सामाजिक तथा सांस्कृतिक धरोहरों के साथ यहां तक पहुंचाया है। हमारी जिम्मेदारी है कि आने वाली पीढ़ी को हम सांस्कृतिक तथा सामाजिक संस्कारों के साथ आगे की राह ले चलें।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज इस विकास के दौर में भी आदिवासी समुदाय को जितनी ऊंचाइयों तक पहुंचना चाहिए था वहां तक नहीं पहुंच पाया है। आदिवासी समाज को विकास की राह में गति मिले इस निमित्त हमारे सहयोगी मंत्री चंपई सोरेन के नेतृत्व में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि विभाग द्वारा धुमकुड़िया भवन का निर्माण कार्य प्रारंभ करना एक सकारात्मक पहल है। मैंने पहले भी रांची के हरमू में एक नींव रखी थी जो आज सरना स्थल के रूप में जाना जाता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सामाजिक एकजुटता ही सशक्त समाज का आधार है। हमें सदैव अपने संस्कृति और सामाजिक संस्कारों से जुड़ कर रहना चाहिए।
मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि लगभग डेढ़ करोड़ की राशि से बनने वाला यह धुमकुड़िया भवन का निर्माण कार्य 12 महीनों के भीतर पूरा कर लिया जाएगा। मुख्यमंत्री ने उम्मीद जतायी कि धुमकुड़िया भवन राजनीति से अलग हटकर समाज के उत्थान, प्रगति एवं सकारात्मक दिशा देने के लिए हमें प्रेरित करेगा।
क्या है धुमकुड़िया
धुमकुड़िया एक ऐसा स्थल है, जिसका आदिवासी समाज खास तौर पर उरांव जनजाति की परंपराओं में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। आदिवासी समाज में युवाओं को जिम्मेदार बनाने के लिए उन्हें सामाजिक परंपराओं से अवगत कराने और व्यावहारिक जीवन के लिए प्रशिक्षित करने की परिपाटी रही है।
जनजातीय समाज में हर गांव में धुमकुड़िया हुआ करता था, जहां हर शाम युवा जुटते थे। उन्हें समाज के बुजुर्ग और मानिंद लोग समाज की परंपराओं और जीवन की जिम्मेदारियों का प्रति जागरूक किया करते थे। युवाओं को समाज, सामाजिक व्यवहार, पारंपारिक कृषि और पुरखाओं के अनुभवों की शिक्षा दी जाती थी। धुमकुड़िया पुरखों के अनुभवों और ज्ञान को नयी पीढ़ी को हस्तांतरित करने का माध्यम रहा है।
धुमकुड़िया एक ऐसा स्थल है, जहां लैंगिक भेदभाव नहीं किया जाता था। धुमकुडिया को कुड़ुख में “को जोख एड़पा” कहा जाता है ओर मुंडा जनजाति मे “गीति ओड़ा” और सामान्य भाषा में युवा गृह कहते हैं।