दुमका। वैसे तो सीता सोरेन की पहचान दिशोम गुरु शिबू सोरेन के परिवार की बड़ी बहू के तौर पर रही है, जो दुमका जिले के जामा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर उनकी पहचान एक तेज-तर्रार जन-सेविका की है, जो महिलाओं और आदिवासियों के मुद्दे उठाती हैं, तथा हर फरियादी को सहायता पहुँचाने की कोशिश करती हैं।
सोशल मीडिया, और खास कर के ट्विटर पर अपनी बेबाक राय के लिए मशहूर सीता सोरेन के 65 हजार से ज्यादा फॉलोवर हैं। दो बेटियों की ‘सिंगल मदर’ होने के बावजूद, ना सिर्फ इन्होंने अपने परिवार को बखूबी संभाला है, बल्कि अपने विधानसभा क्षेत्र की जनता की समस्याओं को भी वे उतनी ही गंभीरता से लेती हैं।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के सत्ता में आने के बाद, एक विधायिका के तौर पर, अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान सीता सोरेन ने अपने विधानसभा क्षेत्र से बाहर की समस्याओं पर भी ध्यान देना शुरू किया है। हालांकि कुछ लोग इसे उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा से जोड़ते हैं, लेकिन उनके निर्देश पर जिन लोगों को सहायता मिलती है, वे उनसे खासे प्रभावित दिखते हैं।
उदाहरण के तौर पर, अभी दो दिन पहले ही कुछ लोगों ने उन्हें ट्विटर पर टैग कर के, दुमका में एक जलमीनार के खराब होने की सूचना दी, तो उन्होंने तुरंत दुमका के उपायुक्त को कह कर, उसकी मरम्मत का इंतजाम किया। गरीबों व वंचितों की आवाज को सरकार तक पहुंचाने के इनके जज्बे की वजह से, कई लोगों को पेंशन का लाभ मिला है, तो कइयों के राशन कार्ड की समस्या भी दूर हुई है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा की महासचिव और झारखंड विधानसभा में महिला बाल विकास समिति की सभापति के तौर पर, इनके कार्यकाल को देखकर कोई भी नहीं कह सकता कि मात्र एक दशक पहले तक ये एक घरेलू महिला थीं, जो सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी बहुत कम नजर आती थीं। राजनैतिक और सामाजिक मुद्दों पर इनकी बेबाक टिप्पणियों ने कई बार अखबारों की सुर्खियां बटोरी हैं, और इसी वजह से, पूरे देश भर में इनके हजारों समर्थक हैं।
इसके अलावा शायद वे सत्ताधारी दल की इकलौती विधायक हैं, जिन्होंने कई मुद्दों पर अपनी सरकार पर भी सवाल उठाने में परहेज नहीं किया। उदाहरण के तौर पर दिवंगत दारोगा रूपा टिर्की के मौत की जाँच का मामला हो, या छात्रवृति माँग रहे विद्यार्थियों का समर्थन, अथवा आम लोगों को राशन मिलने में हो रही देरी का मुद्दा, उन्होंने अपने समर्थकों को कभी निराश नहीं किया है, और इसलिए युवाओं का एक बड़ा वर्ग, इन्हें झारखंड के असहायों की आवाज मानता है।