सिलीगुड़ी: कभी विदेशी धरती पर उगाए जाने वाला ड्रैगन फ्रूट उत्तर बंगाल के लोगों बीच लोकप्रिय होता जा रहा है। इसकी सफल खेती लगभग सात साल पहले जब उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर फ्लोरीकल्चर एग्री बिजनेस मैनेजमेंट (कोफाम) में शुरू हुई, तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि ड्रैगन फ्रूट इतने कम समय में ही उत्तर बंगाल के लोगों के दिलों में अपनी जगह स्थापित कर लेगा। वर्तमान समय में बहुत से ऐसे किसान हैं, जो पारंपरिक खेती से हटकर आधुनिक व लाभप्रद खेती के प्रति आगे आए हैं। ना सिर्फ लाभप्रद खेती के प्रति आगे आ रहे हैं, बल्कि कम लागत में हर साल अब लाखों की आय भी अर्जित कर रहे हैं।
इस बीच, ड्रैगन फ्रूट की खेती के प्रति उत्तर बंगाल में जिस तरह से महिलाएं आगे आ रही हैं, इससे निश्चित रूप से उनके दैनिक जीवन में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। यदि आदिवासी महिलाओं के संदर्भ में देखा जाए तो वे भी काम मिलने के चक्कर में दूसरों के दया पर निर्भर नहीं रहकर आत्म निर्भर बनने की दिशा में सकारात्मक कदम बढ़ा चुकी हैं।
सिलीगुड़ी से लगभग 25 किलोमीटर दूर गंगारामपुर चाय बगान के नजदीक हांसखोआ हो या कभी नक्सलवाद का गढ़ नक्सलबाड़ी का हाथीघिसा इलाका, इन जगहों की आदिवासी महिलाएं ड्रैगन फ्रूट की खेती कर अपने जीवन स्तर को सुधारने की दिशा में आगे बढ़ रही हैं।
हांसखोआ की प्रभा तिर्की चाको ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए एनबीयू कोफाम से प्रशिक्षण प्राप्त की तथा अपने खेत में पहले एक बीघा जमीन में सौ पिलर खड़ा किया। सौ पिलर में एनबीयू से ड्रैगन फ्रूट्स के चार सौ पौधे यानी प्रत्येक पिलर में चार-चार पौधे लगाकर खेती की शुरूआत की। उन्होंने कहा कि पौधे लगाने के डेढ़ साल के अंदर उसमें फल आने शुरू हो गए। जब पौधों में फल लगने लगा तथा उससे लाभ होने लगा तो 10 कट्ठा जमीन पर फिर से इसकी खेती शुरू कर दी गई।
उन्होंने बताया कि इस वर्ष अभी तक चार सौ रुपये किलो की दर से एक सौ किलोग्राम ड्रैगन फल बेच चुकी हैं। पौधों में फल मई जून से लगना शुरू हो जाता है। एक बार फल तोड़ने के बाद हर 10 से 15 दिन के अंतराल पर नए फल पक कर तैयार हो जाते हैं, इस तरह से नवंबर महीने तक फल निकलते रहता है। फल की इतनी लोकप्रियता है कि इसे खरीदने के लिए ग्राहक खेत तक आ जाते हैं।
इसी तरह से नक्सलबाड़ी की हाथीघिसा निवासी आभा टोप्पो ने पांच साल पहले उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय अंतर्गत आने वाले सेंटर फॉर एग्री बिजनेस मैनेजमेंट (कोफाम) में आयोजित कार्यशाला में जानकारी प्राप्त कर एक सीमेंटेड पिलर पर ड्रैगन फ्रूट्स के चार पौधों को लगाया। वर्तमान में 40 पिलर पर 160 पौधे हैं, जिनमें सभी पर फल निकलता है। इसमें मिली सफलता से खुश आभा ने बताया कि घर के ही एक कोने में ड्रैगन फ्रूट्स के लिए एक पिलर तैयार किया गया। कोफाम से एक सौ 25 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से चार पौधे लाए गए। इन चार पौधों से ही अन्य पौधे तैयार किए गए। घर की चारदिवारी के अंदर ही दो चरणों में तीन कट्ठा जमीन में 40 पिलर तैयार कर इसकी खेती शुरू कर दी।
अन्य महिलाओं को भी किया जा रहा है जागरूक
आभा टोप्पो ने बताया कि एनबीयू में मेरे साथ यहा से कई लोगों ने कार्यशाला में भाग लिया था, लेकिन इसकी खेती हाथीघिसा में सिर्फ उन्होंने शुरू की। कोफाम संयोजक डॉ अनूप कुमार के निर्देशन में तकनीकी अधिकारी अमरेंद्र पाडेय के नेतृत्व में तकनीकी जानकारी ली जाती है। टोप्पो द्वारा बताया गया कि वह एक सेल्फ-हेल्प ग्रुप से जुड़ी हुई हैं तथा अन्य आदिवासी महिलाओं को भी ड्रैगन फ्रूट की खेती करने के लिए प्रेरित कर रही हैं। इसके लिए कई लोग आगे भी आए हैं।
खाद व पानी की बहुत कम पड़ती है जरूरत, 30 वर्ष तक देता है फल
कोफाम के तकनीकी अधिकारी अमरेंद्र पाडेय ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट में सफेद व लाल व पीले किस्म के फल होते हैं। लाल किस्म के फल ज्यादा स्वादिष्ट तथा फायदेमंद होते हैं। इसकी खासियत है कि इसमें खाद व पानी की बहुत कम जरूरत पड़ती है तथा बंजर व पथरीली जमीन में भी इसे लगाया जा सकता है। यही वजह है कि इसे वंडर फ्रूट भी कहा जाता है तथा विश्व में ‘एबो-केबो’ के बाद दूसरा सबसे ज्यादा लोकप्रिय फल है। एक पिलर पर एक सीजन में लगभग 15 किलोग्राम फल निकलता है। इसके पौधे को एक बार लगाने पर 30 साल तक फलता रहता है। सबसे पहले एनबीयू के कोफाम में हुई सफल खेती
पाडेय ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट मुख्य रुप से मलेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस, ताइवान व श्रीलंका में होता है। पश्चिम बंगाल में सिर्फ उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के कोफाम में सात साल पहले इसकी सफल खेती शुरू की गई थी। अब इसकी खेती इस क्षेत्र में कई स्थानों पर होने लगी है।
डायबिटीज व कैंसर के मरीजों के लिए होता है काफी फायदेमंद
यह फल औषधीय गुणों से भरा हुआ है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट के गुण काफी मात्रा में पाए जाते हैं। एक ओर इस फल के सेवन से कैंसर व डायबिटीज जैसे बीमारियों से बचाने में सहायता मिलती है, तो दूसरी ओर इसमें कई तरह के विटामिन व मिनरल्स पाए जाते हैं। कोरोना काल में भी लोग इम्यूनिटी बूस्ट के लिए भी इस फल का सेवन लोग कर रहे हैं। ड्रैगन फ्रूट स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट के गुण काफी मात्रा में पाए जाते हैं, जो शरीर की कोशिकाओं को खराब होने से बचाता है। एंटीऑक्सीडेंट कैंसर और डायबिटीज जैसे रोगों के रोकथाम में काफी सहायक होता है। एंटीऑक्सीडेंट फ्री रेडिकल को कम करने का कार्य करते है। यही कारण है कि बैंगलुरू व हैदराबाद के डॉक्टर अपनी दवा के पर्चे में ड्रैगन फ्रूट् को खाने की सलाह देते हैं। यह फल कैंसर व डायबिटीज के मरीजों के लिए भी काफी फायेदमंद होता है।
प्रोफेसर रणधीर चक्रवर्ती, पूर्व संयोजक, एनबीयू कोफाम