खंडवा। आज से 5 दिन बाद यानी 22 अगस्त को भाई-बहन का पर्व रक्षाबंधन है। रक्षाबंधन के दौरान बाजार में कई वैरायटी की राखियां मौजूद हैं। लेकिन इन सबके बीच आदिवासी महिलाओं द्वारा तैयार की गईं राखियां सबका ध्यान अपनी ओर खींच रही हैं। ये राखियां इको फ्रेंडली हैं, जिनका उद्देश्य पर्यावरण बचाना है। इन राखियों से आदिवासियों के रोजगार को भी नई दिशा मिल रही है।
दरअसल खंडवा जिले के आदिवासी आबादी वाले खालवा की बहनों ने बांस और नीबू के बीज से ईको फ्रेंडली राखी बनाई है। जो पर्यावरण बचाने का संदेश दे रही है। इन राखियों को लोग काफी पसंद कर रहे हैं। एक रखी की कीमत 30 रुपए है। वही बांस से बने विशेष रक्षाबंधन पैकेज के साथ इसकी कीमत 250 रुपए है। बॉक्स में महुआ के लड्डू, कुमकुम, चावल सहित अन्य चीजें मौजूद हैं।
खंडवा जिले का खालवा आदिवासी बहुल क्षेत्र है यहां बांस के पारंपरिक व्यवसाय को आधुनिक रूप दिया जाता है। ये लोग वर्षों से बांस सहित पेड़ पौधों से टोकरियों सहित अन्य पारंपरिक उपकरण बना रहे हैं, जिससे इनको रोजगार मिल रहा है। वहीं इस साल रक्षाबंधन पर आदिवासी समाज के भाई-बहनों ने रक्षाबंधन पर ईको फ्रेंडली राखी का विशेष पैकेज तैयार किया है। जिसमें मिठाई के रूप में महुआ के लड्डू , दो छोटे डिब्बे में हल्दी, कुमकुम और चावल के साथ राखी का विशेष पैकेज बनाया है।
इस पैकेज की खास बात यह है कि इस पैकेज में आकर्षण के रूप में दो नींबू के बीज लगाए हैं, ताकि राखी का उपयोग होने के बाद उसे जहां भी छोड़ा जाए वहां नींबू के बीजों से दो पेड़ उग जाएंगे, इससे पर्यावरण को बचाने में मदद मिलेगी। इस विशेष पैकेज की कीमत 250 रुपए है। वही सिंगल राखी कि क़ीमत 30 रुपए है। बहनें इस राखी को ऑनलाइन – ऑफलाइन बेचकर देश भर में भेज रही हैं। जिसे लोग काफी पसंद कर रहे हैं।
नागपुर से इन्हें पांच हजार रखी का ऑर्डर मिला है। वहीं भोपाल से 500 बॉक्स का ऑर्डर मिला है। स्थानीय स्तर पर 2500 से ज्यादा ऑर्डर इनको अभी तक मिल चुके हैं। विशेष पैकेज को तैयार कराने में एक एनजीओ ने इन बहनों की मदद की है। एनजीओ द्वारा विभिन्न बांस कला वस्तुओं को बनाने और विपणन करने का प्रशिक्षण इनको दिया गया है। (साभार: लल्लूराम)