8 सितंबर 1980 को हुई गुवा गोलीकांड की यह घटना झारखंड अलग राज्य आन्दोलन का एक मुख्य टर्निंग प्वाईंट तो थी ही, साथ ही यह भारत की पहली घटना भी बन गई, जिसमें अंतरराष्ट्रीय रेडक्राॅस के नियमों का खुला उल्लंघन हुआ। इस घटना में आदिवासियों पर तत्कालीन बिहार सरकार के बीएमपी के जवानों ने ना सिर्फ गोलियां दागी, बल्कि इलाज के लिए अस्पताल पहुंचने पर उन्हें वहां भी घेर कर मारा।
उस दिन साप्ताहिक हाट मैदान में झारखंड अलग राज्य की मांग कर रहे आंदोलनकारियों की गुआ में आम सभा थी। जिसके अगुवा नेता बहादुर उरांव, भुवनेश्वर महतो, लखन बोदरा, सुखदेव हेम्ब्रोम और बैशाखू गोप थे। सभा के मद्देनजर प्रशासन ने धारा 144 लगा दिया, जिसके बाद नेताओं की गिरफ्तारी को लेकर पुलिस ने फायरिंग कर दी, इसमें 3 आंदोलनकारी शहीद हो गये। उसके बाद गुस्साई भीड़ ने तीर धनुष व कुल्हाड़ी से पुलिस पर हमला बोल दिया, जिसमें 4 जवानों की मौत हो गई थी।
उसके बाद, जब आंदोलनकारी उन घायल साथियों को इलाज के लिए गुवा अस्पताल लेकर गए, तब अस्पताल में भी गोलीबारी हुई। यह एक ऐतिहासिक तौर पर शर्मनाक घटना है जिसमें बिहार मिलिट्री पुलिस ने अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए 8 आंदोलनकारियों को इलाज के क्रम में, अस्पताल में गोलियों से भून डाला और बंदूक के कुंदे से मार-मार कर उनकी हत्या कर दी।
वन विभाग द्वारा फर्जी मामलों में आदिवासियों को फंसाए जाने के खिलाफ, सेल की गुवा खदान में स्थानीय लोगों को रोजगार देने की मांग तथा किसानों के खेतों को बर्बाद कर रहे खदानों से निकलने वाले लाल पानी के खिलाफ शुरू हुआ यह आन्दोलन झारखंड अलग राज्य की मांग में एक टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। इसके बाद सरकार द्वारा तीर धनुष को प्रतिबंधित कर के, सैकड़ों आदिवासियों को गिरफ्तार कर हजारीबाग सेंट्रल जेल भेज दिया गया।
इस घटना के बाद दिशोम गुरु शिबू सोरेन, ए के राय, बिनोद बिहारी महतो, सूरज मंडल व शैलेंद्र महतो समेत कई झामुमो नेता चाईबासा पहुंचे और वहां के एसपीजी ग्राउंड में इस पुलिसिया दमन के खिलाफ सभा को संबोधित किया। इस सभा की सफलता को देखते हुए सरकार ने तीर धनुष को प्रतिबंधित करने का आदेश वापस ले लिया। इस घटना के बाद अलग राज्य की मांग का आंदोलन काफी तेज हो गया।