अगर आपसे कोई पूछे कि सोशल मीडिया पर आप क्या करते हैं, तो ज्यादातर लोगों का जवाब होगा कि वहां वे एक-दूसरे से संपर्क रखने, अथवा ताजातरीन गतिविधियों के बारे में जानने जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सोशल मीडिया की एक पोस्ट किसी की परेशानियों का हल निकाल सकती है?
जी हां, बिल्कुल सही पढ़ा आपने, झारखंड सरकार के परिवहन एवं आदिवासी कल्याण मंत्री चंपई सोरेन सोशल मीडिया का इस्तेमाल लोगों की परेशानियां सुलझाने के लिए कर रहे हैं, और इससे हर दिन दर्जनों लोगों को फायदा भी मिल रहा है। उदाहरण के तौर पर, एक मामला पोटका की रहने वाली सुलेखा दास का है जिन्हें इलाज के लिए आर्थिक दिक्कत हो रही थी, तो उनके परिजनों ने ट्विटर पर मंत्री चंपई सोरेन से सहायता मांगी। उस ट्वीट पर, जिला प्रशासन द्वारा श्रीमती दास को मर्सी अस्पताल में भर्ती कराया गया। ठीक इसी तर्ज पर, मात्र एक ट्वीट पर, प्रशासन ने मानसिक रुप से विक्षिप्त पोटका निवासी छोटो गोप को ना सिर्फ चिकित्सा उपलब्ध करवाई, बल्कि उन्हें बेहतर चिकित्सा हेतु रिनपास (राँची) भी भिजवाया।
इसी क्रम में एक ताजा मामला कल का है। कल सुबह सवा दस बजे गुमला (झारखंड) से एक युवक मंत्री चम्पई सोरेन को टैग करते हुये एक ट्वीट करता है, जिसमें यह आशंका जताई जाती है कि उसकी नाबालिग बहन और कुछ अन्य युवतियों को बहला-फुसला कर दिल्ली ले जाया जा रहा है। आधे घंटे के भीतर, मानव-तस्करी से संबंधित इस ट्वीट को मंत्री द्वारा जिले के उपायुक्त और पुलिस को भेजा गया। कुछ ही मिनटों में, पूरा महकमा अलर्ट हो जाता है, और नगड़ी के पास गुमला पुलिस छह लड़कियों को मानव तस्करों के चंगुल से छुड़ा लेती है।
एक अन्य मामला चाईबासा की एक सामाजिक कार्यकर्ता नेहा निषाद का है, जिसमें उन्होंने बच्चों की एक तस्वीर ट्वीट कर के लिखा – “इन में से किसी के घर में शौचालय नहीं है।” इस ट्वीट पर मंत्री चम्पई सोरेन के निर्देश पर जिला प्रशासन ने अगले 15 दिनों में, उस गांव में 75 से ज्यादा शौचालय बनवाये।
हर दिन सामने आ रहे दर्जनों मामलों में एक मामला अबूधाबी में काम कर रहे मजदूरों का है, जिन्हें एजेंट द्वारा ठगा गया था। चम्पई सोरेन की ट्वीट पर संज्ञान लेते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उनके घर वापसी का इंतजाम किया। दुबई, मलेशिया से लेकर नेपाल व देश के अन्य राज्यों के कई मामले हैं, जिनमें प्रवासी मजदूरों की सहायता कर के, उनके वापस लौटने का इंतजाम किया गया है।
कोरोना काल में चम्पई सोरेन के ट्विटर की सहायता से दर्जनों लोगों को अस्पताल में बेड मिले, तो कई को रेमडेसिविर जैसी दवाइयां भी सरकारी अधिकारियों द्वारा उपलब्ध करवाई गईं। इस काल-खंड में, कई परिवारों को अनाज, तो कई बुजर्गों को पेंशन स्वीकृत करवाने में ट्विटर की बड़ी भूमिका रही।
दुमका में पानी की समस्या हो, या सिमडेगा में चापाकल लगवाना हो, जमशेदपुर में हाई मास्ट लाइट की मरम्मत हो, या फिर पेंशन शुरू करवाने, और राशन कार्ड में नाम जोड़ने की कवायद, ट्वीटर पर ऐसे कई मुद्दे, सरकारी अधिकारियों द्वारा त्वरित संज्ञान लेकर हल किये जा रहे हैं। मात्र एक ट्वीट पर इन समाधानों से जनता तो खुश है ही, साथ ही साथ, इस से सरकार की छवि भी बेहतर हो रही है। राज्य के हर कोने में मौजूद सामाजिक कार्यकर्ता अब किसी भी सहायता के लिए सीधे ट्विटर का सहारा लेते हैं।
इस बारे में जब हमने मंत्री चंपई सोरेन से बात की तो उन्होंने इसे जनता से जुड़ने का एक छोटा-सा प्रयास बताया – “हर दिन दर्जनों लोग राज्य के कोने-कोने से मुझे अपनी छोटी-बड़ी शिकायतें ट्वीट करते हैं, और मेरा प्रयास रहता है कि उनमें से अधिकतर समस्याओं का समाधान हो जाये।”
वैसे तो झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी जनता की परेशानियों को सुलझाने के लिए ट्विटर का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं, लेकिन तकनीक के माध्यम से जन समस्याओं को सुलझाने का यह जज्बा अन्य राज्यों में विरले ही दिखता है।