घाटो(रामगढ़): जिले के मांडू प्रखंड के कई गांव ऐसे हैं, जहां पर आज भी दुनिया को परेशान करने वाली कोरोना जैसी महामारी नहीं पहुंच पाई है। ऐसा ही एक गांव है पिण्डरा पंचायत के उल्हरा गांव। यह आदिवासी गांव है, जहां पर लगभग 32 परिवार रहते हैं। इसमें लगभग 200 की आबादी निवास करते हैं।
कोरोना काल में गांव के ग्रामीण दूसरे गांव या कस्बों की ओर रूख करने से परहेज कर रहे है। काफी जरूरत पड़ने पर ही गांव से बाहर जाते है। सादा खाना व जड़ी-बूटियों पर विश्वास करने वाले यहां के ग्रामीण स्वच्छ वातावरण में रहते है। गांव के ग्रामीणों को अभी तक कोरोना का टीका नहीं दिया गया है। यहां के ग्रामीण अभावग्रस्त जिदगी जी रहे हैं। गांव में न हीं पीने का स्वच्छ पानी है और न ही चिकित्सा की कोई सुविधा है। शिक्षा के नाम पर महज एक नवप्राथमिक विद्यालय है। परेज चौक से गांव की दूरी तीन किमी है। लेकिन आज तक गांव में सड़क नहीं जा पाई है। गांव में गरीबी इतनी है कि 95 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। रोजगार के नाम पर लोग जंगल से लकड़ी काटकर बेचने से लेकर सीसीएल परेज परियोजना की ओर आकर मजदूरी करते हैं।
गांव के फुलमनी देवी, रामा, प्यारी देवी, सरिता देवी, रमेश सोरेन ने कहा कि गांव का विकास करने की इच्छा जनप्रतिनिधियों के बीच शायद नहीं है। आदिवासी बहुल गांव में आने-जाने के लिए पगडंडी से सिवा और कुछ भी नहीं है। जंगल के पास बसा यह गांव के ग्रामीण गरीबी और बेरोजगारी का दंड झेलने को विवश है। गांव के लोग महामारी को लेकर इतने सुरक्षित महसूस करते है कि ग्रामीण नही मास्क का उपयोग करते है और न हीं दो गज दूरी का पालन करने पर यकीन करते हैं। जांच और टीकाकरण तो ग्रामीणों के लिए दूर की गोटी है।