मणिपुर के चुराचांदपुर में शुक्रवार को फिर से हिंसा हुई। जिले में धारा 144 लगे होने के बावजूद प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए और कुछ गाड़ियों में आग लगा दी। जिसके बाद पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई। इस दौरान सुरक्षा बलों ने भीड़ को तितर- बितर करने के लिए हवा में गोलियां चलाईं और आंसू गैस के गोले छोड़े। सरकार का मानना है कि ये प्रदर्शनकारी इंडीजीनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईएलटीएफ) से जुड़े हुए हैं।
दरअसल, मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह शुक्रवार को चुराचांदपुर जिले के न्यू लमका इलाके में एक जिम और खेल सुविधा केंद्र का उद्घाटन करने वाले थे। उससे पहले ही गुरुवार रात करीब 9 बजे प्रदर्शनकारियों ने कुर्सियां तोड़ डालीं और मंच फूंक दिया। सीएम बीरेन सिंह ने घटना को लेकर कहा कि, हम दोषियों के खिलाफ एक्शन लेंगे।
स्थानीय लोगों का दावा है कि इस कार्यक्रम में शिक्षकों, सरकारी कर्मचारियों तथा मनरेगा के जॉब कार्ड होल्डरों को बुलाया गया था। गुरुवार रात की घटना के बावजूद कार्यक्रम को रद्द नहीं किया गया, और इन सभी लोगों के वहाँ इकठ्ठा होने के बाद, कार्यक्रम को रद्द किया गया, जिसे लेकर लोगों में नाराजगी थी।
पांच दिनों के लिए इंटरनेट बंद
गृह विभाग की ओर से जारी एक आदेश में कहा गया है कि शांति और व्यवस्था में किसी भी तरह की गड़बड़ी को रोकने के लिए अगले पांच दिनों के लिए चुराचांदपुर और फिरजावल जिलों में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया गया है।
मणिपुर की भौगोलिक स्थिति
मणिपुर को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है- पर्वतीय और मैदानी इलाका। पर्वतीय इलाका आदिवासी बहुल है तथा राज्य के नौ में से पांच जिले इसी इलाके में हैं। आदिवासी लोग सदियों से इस इलाके की जमीन पर अपना कब्जा होने का दावा करते रहे हैं। उनका दावा है कि वन क्षेत्र समेत इस इलाके की पूरी जमीन का मालिकाना हक उनके पूर्वजों के पास था। राज्य के आदिवासी तबके में जमीन पर पीढ़ी दर पीढ़ी मालिकाना हक की परंपरा बहुत पुरानी है। ऐसे में इस जमीन पर सरकारी हस्तक्षेप का हमेशा विरोध होता रहा है। फोरम की दलील है कि भारत के संविधान में भी आदिवासियों के हक को मान्यता दी गई है, जिसे राज्य सरकार नकारने का प्रयास कर रही है।
क्यों शुरू हुआ यह विवाद ?
इस विवाद की शुरुआत सर्दियों में हुई जब मणिपुर की भाजपा सरकार ने पहाड़ी क्षेत्रों के कई हिस्सों को आरक्षित वन घोषित कर दिया और उसके बाद आदिवासियों को उनके घरों व गाँवों से बेदखल करना शुरू कर दिया। दो महीने पहले, 20 फरवरी, 2023 को मणिपुर के चुराचंदपुर जिले के हेंगलेप सब-डिवीजन के अंतर्गत आने वाले के. सोंगजैंग गांव के ग्रामीणों को बेदखल कर दिया गया। यहाँ के लगभग 20 घरों तथा चर्चों को सरकारी बुलडोज़र से पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया।
इससे पहले, कांगपोकपी वन प्रभाग के डीएफओ द्वारा जारी किए गए 2 दिसंबर, 2022 के एक बेदखली नोटिस के बाद 6 दिसंबर 2022 को मणिपुर के कांगपोकपी जिले के तहत कांगचुप चिरू गांव से आदिवासियों को बेदखल कर दिया गया था। उस वक़्त गरीब आदिवासी ग्रामीणों को अपना घर खाली करने के लिए केवल तीन दिन का समय दिया था जबकि ग्रामीणों ने दावा किया था कि वे भारत की आज़ादी से पहले से अपने गांव में रह रहे हैं।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि राज्य और केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा क्रूर तरीके से मणिपुर में आदिवासी गाँवों में आजादी के पहले से रह रहे लोगों को बेदखल किया जा रहा है। उन्होंने इसे पूरी तरह से अवैध बेदखली बताते हुए तुरंत इस कदम को वापस लेने की माँग की है। उनका दावा है कि सरकार ने संरक्षित वन के दायरे में रहने के बहाने उन्हें उनके घरों से बेघर कर दिया।
दरअसल राज्य की भाजपा सरकार मणिपुर में वनों और संरक्षित भूमि के साथ वेटलैंड्स का सर्वे करा रही है। सरकार का कहना है कि इन जगहों पर अवैध रुप से प्रवासी बस रहे हैं, जिससे वनों के साथ ही वेटलैंड्स को नुकसान पहुंच रहा है। वहीं आदिवासियों का दावा है कि इस सर्वे से उनके हक छीने जा रहे हैं और उन्हें बेदखल करने का प्रयास किया जा रहा है।
इसी बीच, 15 फरवरी 2023 को मणिपुर के चुराचंदपुर जिले के उपायुक्त ने दक्षिण मणिपुर के चुराचंदपुर और मुलनुआम सब-डिवीजन के तहत कई गांवों में ‘अवैध प्रवासियों’ की पहचान करने के लिए एक सत्यापन अभियान चलाने का आदेश दिया। डीसी कार्यालय ने आगे कहा कि संबंधित ग्राम प्रधानों / ग्राम अधिकारियों को सूचित किया गया था कि वे सभी निवासियों की बायोमेट्रिक्स पहचान दर्ज करवाने के लिए उपस्थिति सुनिश्चित करें। स्थानीय आदिवासियों ने इस अभियान का विरोध किया, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे उस वन क्षेत्र के मालिक हैं, जहाँ उनके पूर्वज सैकड़ों-हजारों वर्षों से रहते आ रहे हैं।
उसके बाद, इस साल 27 मार्च को हाई कोर्ट ने अपने एक आदेश में राज्य सरकार से कहा था कि वो मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू करे, जिसने आग में घी डालने का काम किया। इस फैसले के बाद राज्य भर में मैतेई और कुकी समुदाय के लोगों के बीच जो नफरत का माहौल बना है, वह अब तक जारी है।
राज्य सरकार के रवैये से आशंकित हैं आदिवासी!
पिछले महीने मणिपुर सरकार ने जनजातीय उग्रवादी संगठनों के साथ किए गए संस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (एसओओ) एग्रीमेंट को रद्द कर दिया। सरकार का तर्क है कि उग्रवादी समूह जंगतों के खेती कर रहे लोगों को सरकार के खिलाफ भड़का रहे थे।
दरअसल मणिपुर में 30 कुकी विद्रोही समूह हैं, इनमें से 25 ने भारत सरकार और मणिपुर सरकार के साथ त्रिपक्षीय वार्ता के लिए हामी भरते हुए SOO एग्रीमेंट किया था। इनमें से 17 समूह कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन और आठ यूनाइटेट पीपुल्स फ्रंट से जुड़े थे। इस समझौते की शुरुआत 2008 में की गई थी। इसके तहत अलग राज्य की मांग कर रहे कुकी संगठन कुकीलैंड टेरिटोरियल काउंसिल के तहत एक साथ आ गए थे जिन्हें मणिपुर विधानसभा और सरकार में स्वतंत्र वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार मिल गए थे।
खास बात ये है कि मणिपुर में चुनाव से पहले गृह मंत्री अमित शाह ने खुद कूकी समूहों से ये वादा किया था कि अगर भाजपा की सरकार बनी तो यह समस्या जड़ से हल हो जाएगी। हालांकि मणिपुर सरकार के इस कदम से अब व्यवस्था पर एक नया सवाल खड़ा हो गया है।
स्थानीय लोगों की आशंका है कि राज्य सरकार के इस कदम के बाद राज्य में हिंसा का वही पुराना दौर लौट सकता है। पिछले डेढ़ दशकों से कायम शांति को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को सभी समूहों के साथ वार्ता करने की आवश्यकता है। अपने परिवार के भविष्य को लेकर आशंकित स्थानीय नागरिक तावना वाल्टे कहते हैं कि राष्ट्रपति एवं केंद्र सरकार को यहाँ हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है ताकि क्षेत्र में शांति कायम रह पाये।