पिछले महीने झारखंड में छात्रों ने रोजगार के लिए ट्विटर पर अभियान चलाया, तो 24 घंटे के भीतर सरकार को स्पष्टीकरण देना पड़ा। उसके बाद, छात्रवृति की माँग को लेकर अनशन पर बैठे कुछ छात्रों के समर्थन में सोशल मीडिया पर अभियान के बाद, सरकार ने सोशल मीडिया पर ही उनकी माँगों को मानने की घोषणा की।
यह दोनों मामले इस बात की तस्दीक करते हैं कि आदिवासी समाज के युवा भी अब बड़ी संख्या में ट्विटर पर ना सिर्फ अपने मुद्दे उठा रहे हैं, बल्कि सरकारों तक अपनी आवाज पहुँचाने में सफल भी हो रहे हैं।
झारखंड के आदिवासी कल्याण मंत्री चंपई सोरेन, विधायक सीता सोरेन और यहाँ तक की मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी, सोशल मीडिया पर आम लोगों की सहायता करते हैं, और इनमें से अधिकतर लाभुक आदिवासी परिवारों से होते हैं। पेंशन, राशन कार्ड, चापकल, बिजली व अन्य समस्यायें को लेकर लोग ट्वीट करते हैं, और राज्य के अधिकारी उनकी सहायता करते हैं।
देश के अन्य राज्यों में भी, कई युवा और आदिवासी संगठन, समाज के मुद्दे उठाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं। हंसराज मीणा जैसे लेखक और ट्राइबल आर्मी जैसे संगठन, ना सिर्फ आदिवासी समाज के मुद्दे उठा रहे हैं, बल्कि उसे राष्ट्रीय स्तर पर टॉप ट्रेंड में भी शामिल करवा पा रहे हैं। कुल मिलाकर, यह पिछड़े माने जाने वाले आदिवासी समाज की ऑनलाइन दस्तक है, जिसकी आवाज स्पष्ट तौर पर सुनी जा सकती है।