भुवनेश्वर। कोरापुट के जंगलों में पले-बढ़े और अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के पदाधिकारी के रूप में ओडिशा के आदिवासियों के लिए काम करने वाले नेता विश्वेश्वर टुडु केंद्रीय मंत्रिमंडल में राज्य का आदिवासी चेहरा बनकर उभरे हैं। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा धारक टुडु बालीमेला पनबिजली उत्पादन परियोजना में राज्य सरकार की नौकरी छोड़ने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए थे। उन्होंने आरक्षित मयूरभंज सीट से 2019 का आम चुनाव जीता था और पहली बार लोकसभा सदस्य बने।
इससे पहले, 2009 और 2014 के चुनावों में मयूरभंज सीट नवीन पटनायक की बीजू जनता दल (बीजद) के पास थी, लेकिन टुडु की कड़ी मेहनत और साफ छवि के कारण 2019 के चुनावों में इस सीट पर भगवा पार्टी की जीत सुनिश्चित हुई। मयूरभंज जिले के नौ विधानसभा क्षेत्रों में से छह सीट भाजपा के प्रतिनिधियों के पास हैं जबकि तीन अन्य सीट पर बीजद का कब्जा है।
सेवानिवृत्त सैन्यकर्मी सुकिल टुडु के बेटे विश्वेश्वर टुडु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित संगठनों से निकटता से जुड़े रहे। उनके पिता भी मयूरभंज जिले में मोराडा प्रखंड के सनामुंडामणि ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच थे। अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़ने के अलावा टुडु संघ परिवार की सरस्वती शिशु मंदिर परियोजना में भी सक्रिय रहे।
वह सांसद बनने से दो दशक पहले ही संघ और उसके प्रमुख संगठनों के साथ जुड़ गए थे। टुडु ओडिशा राज्य भाजपा के एसटी मोर्चा के प्रमुख भी हैं और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के महासचिव हैं। ओडिशा के आदिवासी चेहरे के रूप में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में उनकी पदोन्नति को रणनीतिक माना जा रहा है, क्योंकि झारखंड के राज्यपाल के रूप में द्रौपदी मुर्मू का कार्यकाल हाल में समाप्त हुआ है और उन्हें दूसरी बार राज्यपाल के तौर पर जिम्मेदारी नहीं दी गई। भाजपा के पास ओडिशा से नौ सांसद हैं और उनमें से आठ लोकसभा में हैं।