नई दिल्ली: आम तौर आदिवासियों के बारे में यह धारणा है कि वे पारंपरिक तरीके से ही जीवनयापन करते हैं। लेकिन तमिलनाडु के तिरूवन्नामलाई जिले के आदिवासियों ने इस धारणा को तोड़ दिया है। जवाधु हिल्स जनजातीय कृषि उत्पादक कंपनी ने मात्र 4 महीने में ही सफलता की ऐसी सीढ़ी चढ़ी है कि वह लोगों के लिए नजीर बन गई है। जनजातीय कार्य मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार कंपनी ने केवल 4 महीने में 12 लाख रुपये के प्रोसेस्ड प्रोडक्ट की बिक्री की है।
कौन हैं जवाधु पहाड़ी के आदिवासी
तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई जिले में जवाधु पहाड़ियां स्थित हैं। इस ब्लॉक में 92.60 फीसदी मलयाली आदिवासी हैं और उनके जीवन का मुख्य आधार गैर-लकड़ी वन उपज और पट्टा भूमि पर उगाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के पेड़ जैसे इमली, कटहल, नारियल, नींबू और केला और आंवला आदि शामिल हैं। इस क्षेत्र के आदिवासियों को सशक्त बनाने के लिए ट्राइफेड के सहयोग से जवाधु हिल्स जनजातीय कृषि उत्पादक कंपनी का गठन 2020 में किया गया था। इसमें किसान हित समूहों, उत्पादक समूहों और स्वयं सहायता समूहों के सदस्य शामिल हैं। जिनका सामुदायिक स्तर पर गठन किया गया है। एफपीओ के निदेशकों और प्रमुख मैनेंजमेंट टीम में सभी आदिवासी हैं।
एक साल के अंदर 4 मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयां स्थापित
जवाधु हिल्स जनजातीय कृषि उत्पादक कंपनी द्वारा एक साल से भी कम समय में इमली, बाजरा, शहद और काली मिर्च के प्रसंस्करण और पैकेजिंग के लिए चार मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयां स्थापित की गई हैं। पूरी तरह से आदिवासियों द्वारा चलाई जा रही इन इकाइयों ने नवंबर 2020 से उत्पादन शुरू किया है। इनकी प्रतिदिन उत्पादन क्षमता 1 टन है। अब तक 4 महीने से भी कम समय में कंपनी ने 12 लाख रुपये तक के प्रसंस्कृत उत्पाद बेचे हैं।
इसके अलावा एफपीओ को ट्राइब्स इंडिया मार्केटप्लेस पर सेलर के रूप में पंजीकृत भी किया गया और यह अपने 9 उत्पादों को प्लेटफॉर्म के माध्यम से बेच रहा है। जवाधु वीडीवीके, जमुनामारथुर वीडीवीके और कूटथुर वीडीवीके केंद्र हैं जो एफपीओ के तहत काम कर रहे हैं। आदिवासी इन वीडीवीके के माध्यम से गैर-लकड़ी वन उत्पादों या लघु वन उत्पादों के जरिए अपनी आजीविका अर्जित कर रहे हैं।