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सात वर्ष से विस्थापन का दंश भोग रहे आदिवासी

बालाघाट। कान्हा नेशनल पार्क से शासन ने बैगा आदिवासियों को विस्थापित तो कर दिया है, लेकिन गरीब बैगा आदिवासी आज भी सुविधाओं को तरस रहे हैं। आलम यह है कि उन्हें न तो पीएम आवास का लाभ मिला है और न ही पेयजल की कोई व्यवस्था हो पाई है। पिछले सात वर्षों से गरीब बैगा आदिवासी इस समस्या से दो चार हो रहे हैं।

जानकारी के अनुसार कान्हा नेशनल पार्क के अंतर्गत वनग्राम झोलर में बैगा आदिवासी परिवार निवास करते थे। जिन्हें शासन ने वर्ष २०१४ में ग्राम पंचायत हर्राभाट के चरचेंडी के बाहेटोला में विस्थापित किया गया था। तब से लेकर अभी तक यहां बैगा आदिवासी परिवार निवास कर रहे हैं। यहां पर करीब ५० बैगा परिवार को विस्थापित किया गया है। लेकिन इन्हें उस समय कुछ सुविधाएं मुहैया नहीं कराई गई। ऐसा नहीं कि इन बैगा आदिवासी परिवार द्वारा सुविधाएं मुहैया कराए जाने के लिए किसी से गुहार न लगाई हो, इन्होंने जनप्रतिनिधियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों को आवेदन दिया, लेकिन किसी ने इनकी नहीं सुनी। जिसके कारण आज भी समस्याएं जस की तस बनी हुई है।

बांस-लकडिय़ों की झोपड़ी में कर रहे गुजर-बसर
पीडि़त बैगा आदिवासियों ने बताया कि उन्हें अभी तक पीएम आवास योजना का लाभ नहीं मिला है। वे आज भी बांस-लकडिय़ों की झोपड़ी बनाकर निवास कर रहे हैं। पूर्व में अनेक बार आवास योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन दिए, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो पाई।

कच्चे मकान में भी करते हैं निवास
झोपडिय़ों में निवास करने से सबसे ज्यादा परेशानी बारिश के दिनों में होती है। बावजूद इसके सभी बैगा आदिवासी इन झोपडिय़ों पर ही निवास कर रहे हैं। हालांकि, कुछेक लोगों ने कच्चा मकान बना लिया है, लेकिन वे भी आवास योजना से वंचित हैं।

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