बालाघाट/मंडई। वर्ष 2013 से लगातार विस्थापन का दंश भोग रहे हैं बैगा आदिवासी। इन विस्थापित बैगा आदिवासियों के आवागमन के लिए अभी तक न तो पक्की सड़क का निर्माण कराया गया है और न ही शुद्ध पेयजल की व्यवस्था की गई है। एक हैंडपंप के सहारे ग्रामीण अपनी प्यास बुझाते हैं। ग्रीष्म ऋतु में जहां ग्रामीण पानी के लिए परेशान होते हैं। वहीं बारिश के दिनों में आवागमन के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। मामला कान्हा नेशनल पार्क के कोर क्षेत्र के वन ग्राम झोलर से बिरसा क्षेत्र के ग्राम पंचायत हर्राभाट के बाहीटोला में विस्थापित हुए बैगा आदिवासियों का है।
जानकारी के अनुसार कान्हा नेशनल पार्क के वनग्राम झोलर के करीब डेढ़ सौ आदिवासी बैगा विस्थापित होकर ग्राम पंचायत हर्राभाट के चरचंडी गांव के समीप बाहीटोला में बस गए हैं। यहां मौजूदा समय में करीब 32 परिवार विस्थापन का जीवन जी रहे हैं। भले ही इस गांव की आबादी डेढ़ सौ है, लेकिन उन्हें सुविधाएं नगण्य है। गांव पहुंचने के लिए आज भी सड़क नहीं बन पाई है। शुद्ध पेयजल की आपूर्ति के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है। जिसके कारण यहां के ग्रामीणों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीणों के अनुसार गांव में हैंडपंप से वे अपनी प्यास बुझाते हैं। यहां पानी की ज्यादा किल्लत होने पर जमुनिया नदी का सहारा लेते हैं। इसके लिए उन्हें करीब डेढ़ किमी का सफर तय करना पड़ता है। यह समस्या किसी एक दिन की नहीं है। बल्कि ग्रीष्म ऋतु में हर वर्ष बन जाती है।
योजनाओं का भी नहीं मिल पा रहा है लाभ
ग्रामीणों ने बताया कि बाहीटोला में विस्थापित होने के दो वर्ष तक तो बिजली नहीं आ पाई थी। वहीं अभी भी आवागमन के लिए पक्की सड़क नहीं बनी है। इतना ही नहीं ग्रामीण आज भी कच्चे मकानों में निवास कर रहे हैं। अधिकांश ग्रामीणों को शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि बारिश के दिनों में उन्हें आवागमन में काफी परेशानी होती है। वहीं गर्मी के दिनों में पानी के लिए यहां-वहां भटकना पड़ता है।
नहीं हो पा रही है सुनवाई
ग्रामीण जगन सिंह धुर्वे, मनीराम धुर्वे, सुखराम धुर्वे, चैनबती बाई, प्यारेलाल धुर्वे, बुद्धन सिंह धुर्वे सहित अन्य ने बताया कि सुविधाओं के अभाव में वे अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। शासन को उनकी समस्या का शीघ्र समाधान करना चाहिए। ताकि लोगों को सुविधाएं मिल सकें। उन्होंने बताया कि पूर्व में इन समस्याओं को लेकर अनेक बार प्रशासनिक अधिकारियों को अवगत भी कराया गया। जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई, लेकिन अभी तक किसी ने इसे न तो गंभीरता से लिया और न ही उनकी कोई सुनवाई हो रही है। जिसके कारण समस्या जस की तस बनी हुई है।