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मणिपुर हिंसा से उपजे कुछ सवाल !

मणिपुर में चल रही हिंसा में अब तक 54 लोगों की जान जा चुकी है, सैकड़ों घायल हैं, जबकि हजारों लोगों को अपने घरों से दूर, सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया है। लेकिन क्या आपने सोचा है ऐसा क्या हुआ, कि अमूमन शांत दिखने वाले इस पहाड़ी राज्य में, हिंसा शुरू हो गई?

दरअसल मणिपुर के कानून के अनुसार सिर्फ आदिवासी समुदाय के ही लोग पहाड़ी इलाकों में बस सकते हैं, यानी अपना घर बनाकर जीवकोपार्जन कर सकते हैं। राज्य का 90 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ी है, इसलिए राजनैतिक रुप से प्रभावशाली मैतेई समुदाय वहां भी अपना नियंत्रण चाहता है। इसलिए वे स्वयं को अनुसूचित जाति से हटा कर, अनुसूचित जनजाति में शामिल होना चाहते हैं।

चूंकि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिला है, इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते। जबकि, नागा और कुकी जैसे आदिवासी समुदाय चाहें तो घाटी वाले इलाकों में जाकर रह सकते हैं। मैतेई समुदाय को लगता है कि इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद उनका दबदबा सिर्फ 10 फीसदी इलाके पर है। जबकि, 40 फीसदी जनजाति समुदाय का कब्जा 90 फीसदी पहाड़ी इलाके पर है। मैतेई और नगा-कुकी के बीच विवाद की असल वजह यही है। यह सिर्फ नौकरी में आरक्षण या हमारे अधिकारों में अतिक्रमण का नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व से जुड़ा मामला है। अगर उन्हें अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जाता है तो आदिवासियों की सारी जमीन चली जाएगी।

मणिपुर सरकार को बताना चाहिए कि :

* राज्य सरकार द्वारा वनों के संरक्षण के नाम पर आदिवासियों को बेघर क्यों किया जा रहा है? आदिवासियों के गांवों पर बुलडोजर क्यों चल रहे हैं? इस से आदिवासी समुदाय में काफी नाराजगी है।

* मणिपुर की आबादी में 53 फीसदी हिस्सा रखने वाले मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की कोशिश क्यों की जा रही है। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह समेत राज्य के 60 में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से ही आते हैं। पहले से राजनैतिक तौर पर मजबूत इन लोगों को अगर अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जाता है तो वनों, पहाड़ों व गांवों में आदिवासियों के अधिकारों का संरक्षण कैसे होगा?

* पिछले महीने (20 अप्रैल को) मणिपुर हाई कोर्ट ने एक आदेश में राज्य सरकार को मैतेई समुदाय की ओर से अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा गया था। कोई हाई कोर्ट को बताए कि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। उन्हें यह पता होना चाहिए कि आदिवासी पैदा होते हैं, बनाये नहीं जाते।

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