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कर्नाटक में भाजपा की हार के कारण

कर्नाटक विधानसभा चुनावों के परिणामों में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिल गया है। इन चुनाव परिणामों से ना सिर्फ भाजपा को, बल्कि जनता दल (एस) को भी तगड़ा झटका लगा है। इन चुनाव परिणामों में भाजपा की हार के मुख्य कारण ये रहे।

भ्रष्ट्राचार के आरोप
कांग्रेस भाजपा पर 40% कमीशन का आरोप लगा रही थी, जबकि एंटी-इनकंबेंसी झेल रही सत्ताधारी भाजपा उस पर कोई संतोषजनक जबाब नहीं दे पाई। राहुल- प्रियंका ने भी इस मुद्दे पर सरकार को खूब घेरा, जबकि भाजपा का पूरा फोकस मुद्दे को भटकाने का रहा।

कांग्रेस के 5 वादे
कांग्रेस इस बार राज्य के सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन का लाभ देने का वादा किया था। इसके अलावा उन्होंने 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली, 10 किलो मुफ्त राशन, बेरोजगारी भत्ता एवं महिलाओं को कैश ट्रांसफर जैसे लोक-लुभावन वादे किये, जिसका लाभ उसे मिला।

बीएस येदुयिरप्पा को नजरंदाज करना
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर मशहूर येदियुरप्पा भाजपा की ताकत रहे हैं। साल 2013 में जब वो बीजेपी से अलग थे तब भाजपा 40 सीटों पर सिमट गई थी। लेकिन इस बार बीएस येदियुरप्पा चुनाव नहीं लड़े। वो प्रचार अभियान में जरूर जुटे थे, लेकिन उनको टिकट ना मिलने से निचले स्तर पर संदेश गया कि पार्टी उनको नजरंदाज कर रही है। भाजपा की हार के पीछे एक बड़ा कारण येदुयिरप्पा को नजरंदाज करना भी माना जाएगा। भ्रष्ट्राचार के आरोपों के बावजूद वो “मास लीडर” हैं।

केंद्रीय दखल से सूबे के नेता हुए उदासीन
जब बीएस येदियुरप्पा को सीएम की कुर्सी से हटाया गया तो साफ था कि केंद्रीय नेतृत्व उनसे नाराज था। परदे के पीछे अटकलें थीं कि येदुयिरप्पा दिल्ली के फैसले मानने से गुरेज कर रहे थे, इसलिए उन्हें हटाया गया। उनके बाद आये बसवराज बोम्मई दिल्ली के इशारे पर ही सारे काम कर रहे थे। सूबे की राजनीति में दिल्ली का दखल स्थानीय नेताओं को रास नहीं आया। टिकट वितरण के बाद कईयों ने पार्टी को इसी वजह से अलविदा कहा। उनका कहना था कि बसवराज केवल नाम के सीएम हैं।

‘कांग्रेस की सरकार बनी तो दंगे होंगे’
चुनाव प्रचार के दौरान गृहमंत्री अमित शाह के इस बयान ने लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। रही-सही कसर मणिपुर के दंगों ने पूरी कर दी, जहाँ भाजपा की ही सरकार है।

हिजाब विवाद
हिजाब विवाद की शुरुआत कर्नाटक से हुई थी। बजरंग दल और विहिप जैसे संगठनों ने हिजाब को लेकर तीखे तेवर दिखाए। उसके बाद ये देश भर में फैल गया। चुनाव से ऐन पहले बसवराज सरकार ने मुस्लिमों को दिए जा रहे चार फीसदी आरक्षण को खत्म कर दिया। भाजपा को लगता था कि इस से हिंदू वोटर उसके पक्ष में आ खड़े होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बजरंग दल को भगवान बजरंग बली से जोड़ने की कोशिश भी नाकाम रही।

राहुल गाँधी की लोकसभा सदस्यता
भारत जोड़ो यात्रा में समाज के हर तबके से बातचीत करते दिखे राहुल गाँधी की स्वीकार्यता तेजी से बढ़ी। जिस राहुल गाँधी को पप्पू साबित करने में भाजपा ने डेढ़ दशक झोंक दिये, भारत जोड़ो यात्रा के बाद उनकी लोकसभा सदस्यता को खत्म करने की बेचैनी ने वह छवि तोड़ दी। कई कट्टर भाजपाई कार्यकर्ता भी यह सोचने को मजबूर हो गए कि आखिर “पप्पू” से भाजपा क्यों डरी हुई है?

पहलवानों का विरोध प्रदर्शन
भाजपा के लाख प्रयासों के बावजूद, अधिकतर लोग यह मानने को तैयार नहीं थे कि वे पहलवान झूठ बोल रहे हैं, जिन्होंने देश को कई गौरव के क्षण दिए हैं। गंभीर आरोप झेल रहे बृजभूषण सिंह के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज करवाने के लिए जिस प्रकार पहलवानों को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा और उसके बाद भी कोई खास कार्यवाही नहीं हुई, उसने भाजपा सरकार की स्वच्छ छवि को तार-तार कर के रख दिया।

सूडान में फंसे भारतीयों पर राजनीति
चुनाव प्रचार के दौरान सूडान में फंसे कर्नाटक के कुछ लोगों की स्वदेश वापसी के लिए वरिष्ठ कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को एक ट्वीट किया। विदेश मंत्री ने उसका एक राजनैतिक जबाब दिया, जिस से यह संदेश गया कि केंद्र इस मामले को लेकर गंभीर नहीं है, जबकि राज्य में भी भाजपा की ही सरकार थी। इस घटना ने कहीं ना कहीं भाजपा की “नेशन फर्स्ट” की छवि पर नकारात्मक प्रभाव डाला।

इन चुनाव परिणामों में सबसे खास बात यह रही कि कर्नाटक में एक ही दल (कांग्रेस) को स्पष्ट बहुमत मिल गया है तो उसे जेडी-एस या किसी अन्य दल पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। किसी भी राज्य के लिए, एक स्थायी सरकार हमेशा बेहतर विकल्प होती है।

यह कहा जा सकता है कि इस जीत ने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस को “संजीवनी” प्रदान कर दी है, जिसका असर अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनावों में निश्चित तौर पर दिखेगा। इन परिणामों के बाद अब अगर राहुल गाँधी विपक्षी दलों के सर्वमान्य नेता बन कर उभरें, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

नोट: लेखक राजनैतिक विश्लेषक हैं।

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