नई दिल्ली। मणिपुर हाइकोर्ट के मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने पर विचार करने के निर्देशों पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणियां की हैं। शीर्ष अदालत ने आदेश को पूरी तरह से गलत बताते हुए, उस पर रोक लगाने की मंशा जाहिर की, लेकिन हाई कोर्ट में पहले से ही दायर याचिका को देखते हुए, ऐसा आदेश नहीं दिया।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मणिपुर उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एम. वी. मुरलीधरन ने अवसर दिए जाने के बावजूद मणिपुर में बहुसंख्यक मेइती को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के अपने फैसले को दुरुस्त नहीं किया।
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि उच्च न्यायालय का आदेश गलत था और मुझे लगता है कि हमें उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगानी होगी… हमने न्यायमूर्ति मुरलीधरन को खुद को सही करने का समय दिया और उन्होंने ऐसा नहीं किया।
पीठ में शामिल जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जे. बी. पारदीवाला ने कहा कि यह निर्देश सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठों के पिछले निर्णयों द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के खिलाफ था, जो अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के रूप में समुदायों के वर्गीकरण से संबंधित था। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक नहीं लगाई, क्योंकि उसे सूचित किया गया था कि उसके खिलाफ अपील उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के समक्ष लंबित है।
शीर्ष अदालत ने यह बात यह जानने के बाद कही कि मणिपुर सरकार द्वारा कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुरलीधरन की पीठ के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया था, और पीठ ने मैतेई को एसटी का दर्जा देने के अपने 27 मार्च के निर्देश का पालन करने के लिए राज्य के लिए समय सीमा बढ़ा दी थी। मणिपुर के आदिवासी 27 मार्च के मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश के बाद मेइती को आरक्षण का विरोध कर रहे हैं, जिसमें राज्य सरकार को समुदाय को एसटी का दर्जा देने की मांग पर चार सप्ताह के भीतर केंद्र को सिफारिश भेजने के लिए कहा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुकी सहित अन्य आदिवासी समुदाय उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं।