इम्फाल। मणिपुर हाई कोर्ट मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के अपने फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई करेगा। मैतेई ट्राइब्स यूनियन (MTU) ने मणिपुर हाई कोर्ट में ये रिव्यू पिटिशन दायर की थी, जिसे कार्यवाहक चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन की अदालत में सुनवाई के लिए स्वीकार किया गया। ज्ञात हो कि जस्टिस मुरलीधरन ने ही 27 मार्च वाला विवादास्पद आदेश जारी किया था।
इस साल 27 मार्च को हाई कोर्ट ने अपने एक आदेश में राज्य सरकार से कहा था कि वो मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करे। इसके बाद राज्य भर में मैतेई और कुकी समुदाय के लोगों के बीच हिंसा भड़क उठी जो अब तक जारी है। बाद में कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका डाली गई जिसे सोमवार, 19 जून को स्वीकार कर लिया गया। अब 5 जुलाई को इस पर सुनवाई होगी। उससे पहले अदालत ने राज्य और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर इस संबंध में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
मुख्यमंत्री ने शांति बनाए रखने की अपील की
राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने दोनों समुदायों के लोगों से शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील की है। उन्होंने कुकी और मैतेई लोगों से कहा है कि वे दोनों ही हिंसा से बचें। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक सीएम बीरेन सिंह ने कहा- “मैं हथियारबंद मैतेई लोगों से अपील करता हूं कि वे किसी पर हमला नहीं करें। शांति और सद्भाव बनाए रखें, ताकि राज्य में सामान्य स्थिति वापस आ सके।”
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश को गलत ठहराया था
पिछले महीने, मणिपुर हाइकोर्ट के मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने पर विचार करने के आदेश को पूरी तरह से गलत बताते हुए, उस पर रोक लगाने की मंशा जाहिर की थी। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा था कि “उच्च न्यायालय का आदेश गलत था और मुझे लगता है कि हमें उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगानी होगी… हमने न्यायमूर्ति मुरलीधरन को खुद को सही करने का समय दिया और उन्होंने ऐसा नहीं किया।”
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जे. बी. पारदीवाला ने कहा था कि यह निर्देश सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठों के पिछले निर्णयों द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के खिलाफ था, जो अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के रूप में समुदायों के वर्गीकरण से संबंधित था।
सीमित इंटरनेट सेवाएं प्रदान करने का निर्देश
मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को कुछ चिह्नित क्षेत्रों में सीमित इंटरनेट सेवाएं मुहैया कराने का निर्देश दिया है। न्यायालय की पीठ ने कहा कि लोगों के आवश्यक कार्यों के लिए, विशेष रूप से छात्रों की जारी प्रवेश प्रक्रिया के लिए इंटरनेट जरूरी है। राज्य में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच हिंसा शुरू होने के कारण तीन मई से इंटरनेट पर रोक लगी हुई है।