बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आदिवासी विवाह को लेकर एक अहम फैसले में कहा है कि आदिवासी समाज के विवाह में तलाक के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम लागू नहीं हो सकता। याचिकाकर्ता ने आवेदन में विवाह विच्छेद के लिए आपसी सहमति का भी हवाला दिया था। इस मामले की सुनवाई को परिवार न्यायालय ने पहले ही याचिका खारिज कर दी थी।
ज्ञात हो कि हाईकोर्ट में कोरबा जिले के एक आदिवासी दंपती ने आपसी मतभेद के कारण परिवार न्यायालय में आवेदन पेश कर तलाक की अनुमति मांगी थी। परिवार न्यायालय से मामला खारिज होने के बाद दंपती ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर तलाक की मांग की थी। मामले की सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस दीपक तिवारी की डिवीजन बैंच में हुई। जस्टिस भादुड़ी ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता से पूछा कि कौन से नियम व प्रावधान के तहत विवाह विच्छेद की अनुमति दी जाएगी।
आदिवासियों के लिए अलग नियम
हाईकोर्ट ने बताया कि केन्द्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर आदिवासियों के विवाह विच्छेद सहित जरूरी व्यवस्थाओं को हिन्दू विवाह अधिनियम व कानून से अलग कर दिया गया है। कोर्ट ने जानकारी देने के साथ ही कोर्ट अधिवक्ता से पूछा कि आदिवासी समाज में विवाह और तलाक की क्या व्यवस्था है। नियम व कानून का अध्ययन करे। इस तरह की कोई व्यवस्था हो, तो इसकी जानकारी दें।
कोर्ट ने अधिवक्ता से आदिवासी दम्पती के विवाह की परंपरा के साथ ही आदिवासी समाज में विवाह विच्छेदन की कोई तो परंपरा होगी कहा। साथ ही कोर्ट ने उदाहरण देकर भी अधिवक्ता को परंपरा होने की जानकारी हासिल कर कोर्ट को बताने के लिए कहा।