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झारखंड के डॉ. गिरधारी राम गौंझू को मरणोपरांत पद्मश्री सम्मान

रांची। नागपुरी साहित्य संसार के सितारे डा. गिरधारी राम गौंझू को भारत सरकार ने मरणोपरांत पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। पिछले साल, सांस लेने में दिक्कत के कारण रिम्स में उनकी मौत हो गई थी। वह किडनी की समस्या से जूझ रहे थे। उनके परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटे व एक बेटी है। गिरिधारी राम गौंझू को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान दिया गया है।

अपने आप में इनसाइक्लोपीडिया थे डॉ. गौंझू
14 दिसंबर साल 2011 को रांची विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत हो चुके गिरधारी राम गौंझू की कई किताबें भी प्रकाशित हुई है। वो हमेशा से सामाजिक और सांस्कृतिक काम भी करते थे। उन्हें जानने वाले कहते हैं कि गिरधारी राम गौंझू अपने आप में पूरी की पूरी इनसिक्लोपीडिया थे। झारखंडी वाद्य यंत्र, नागपुरिया संस्कृति, नृत्य, गीतों पर किताब लिखकर उन्होंने झारखंड की अविस्मरणीय विरासत को हमेशा संजोने का काम किया है।

झारखंड रत्न पुरस्कार से सम्मानित थे डॉ. गौंझू
साल 1949 में खूंटी के बेलवादाग में जन्मे गिरिधारी राम गौंझू ने 1975 में परमवीर अलबर्ट एक्का मेमोरियल कॉलेज चैनपुर गुमला से पढ़ाने का काम शुरु किया था। इसके बाद वो गोस्सनर कॉलेज, रांची कॉलेज रांची विवि जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में अध्यापन का काम किया। डॉ. गौंझू ने अपनी किताबों के माध्यम से नागपुरी साहित्य को ना सिर्फ संजोया है, बल्कि समृद्द भी किया है। साथ ही 1988 में फीदर पीटर नवरंगी व्यक्तित्व एवं कृतित्व विषय पर शोध किया था, बाद में उन्हें झारखंड रत्न सहित कई सम्मान से सम्मानित भी किया गया।

झारखंडी साहित्य से था लगाव
डॉ. गौंझू को जानने वाले कहते हैं कि उन्हें उन्हें झारखंड की भाषा, संस्कृति और साहित्य से बहुत लगाव था। यही वजह थी कि उन्होंने अपने किताब के माध्यम से नागपुरी साहित्य का पूरी दुनिया के सामने मान बढ़ाया। वो हमेशा झारखंडी साहित्य के विकास के लिए तत्पर रहते थे। यही वजह थी कि उनसे मिलने वाला हर व्यक्ति उनसे प्रभावित होता था। कहते हैं कि जो भी व्यक्ति उनके पास जाता वो कभी भी उसे निराश कर के नहीं भेजते थे।

साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं डॉ. गौंझू
डॉ. गौंझू की साहित्य के प्रति लगाव कितना गहरा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं, कि वो 72 वर्ष की उम्र म भी साहित्य साधना में रमे रहते थे। अपने अंतिम समय में भी उन्होंने कभी साहित्य को नहीं छोड़ा, यही वजह है कि वो आज भी पुस्तकों के जरिए साहित्य प्रेमियों के दिल में जीवित हैं।

सांस्कृतिक गतिविधियों में काफी सक्रिय रहे
डॉ. गिरिधारी राम गौंझू सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में काफी सक्रिय रहते थे। झारखंड की कला संस्कृति के क्षेत्र में गिरधारी राम गौंझू एक ऐसा नाम थे, जिन्होंने झारखंड की कला संस्कृति को एक मुकाम दिया। किसी भी कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति जरूर होती थी।

पत्रिकाओं का संपादन भी किया
उनकी प्रकाशित रचनाओं में कोरी भइर पझरा, नागपुरी गद तइरंगन, खुखड़ी- रूगडा, सहित अनेकों पत्र-पत्रिकाओं में उनकी लिखने प्रकाशित होती रही हैं। नागपुरी त्रैमासिक पत्रिका गोतिया के कार्यकारी संपादक रहे। अखरा निंदाय गेलक नाटक रचना झारखंड के ज्वलंत समस्या पलायन जैसे संवेदनशील विषय को लेकर प्रकाशित किया गया था, जो काफी लोकप्रिय और जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में पाठ्यक्रम के रूप भी शामिल है।

रांची यूनिवर्सिटी में खुशी की लहर
मरणोपरांत उन्हें पद्मश्री सम्मान मिलने पर रांची विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ कामिनी कुमार, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ सत्यनारायण मुंडा, रांची विश्वविद्यालय के जनजाति एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के समन्वयक डॉ. हरि उरांव, डॉ. उमेश नंद तिवारी, डॉ. वीरेंद्र कुमार महतो समेत अन्य शिक्षाविदों और साहित्यकारों ने खुशी जताई और इसे राज्य के लिए गर्व का विषय बताया।

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