नई दिल्ली। मणिपुर ट्राइबल फोरम ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक इंटरलोक्यूटरी एप्लिकेशन के माध्यम से भारतीय सेना के माध्यम से सुरक्षा की मांग करते हुए कहा कि वह केंद्र और राज्य सरकार दोनों के “खोखले आश्वासनों” पर भरोसा नहीं कर सकता है।
फोरम का कहना है कि केंद्र ने हिंसा रोकने का जो आश्वासन शीर्ष अदालत को दिया था वो कोरा झूठ था। भाजपा समर्थित कम्युनल संगठन कुकी जनजाति पर लगातार हमले कर रहे हैं। पिछली सुनवाई के बाद से अब तक 81 लोग मारे जा चुके हैं जबकि 31,410 लोगों को अपना घर छोड़कर दूसरी जगहों पर जाना पड़ा है। इस साजिश में मणिपुर के सीएम भी शामिल हैं।
फोरम ने कहा कि कुकी को एक सशस्त्र सांप्रदायिक संगठन द्वारा जातीय रूप से साफ किया जा रहा है। उन्होंने सुरक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया क्योंकि आदिवासी लोग अब राज्य पुलिस बलों पर भरोसा नहीं कर सकते। संगठन की दलील थी कि पिछली सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल द्वारा आश्वासन दिए जाने के बावजूद अब तक हालात में कोई सुधार नहीं है।
फोरम ने शीर्ष न्यायालय से अनुरोध किया कि वह केंद्र के खोखले आश्वासन पर भरोसा नहीं करे। उसने अल्पसंख्यक कुकी आदिवासियों की सेना द्वारा सुरक्षा किए जाने का आग्रह किया। उनका आरोप है कि केंद्र सरकार और मणिपुर के मुख्यमंत्री संयुक्त रूप से एक साम्प्रदायिक एजेंडा को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसका लक्ष्य पूर्वोत्तर राज्य में कुकी जनजाति के लोगों का जातीय सफाया करना है।
अर्जी में कहा गया है कि कुकी और मैतेई जैसे दो समुदायों के बीच टकराव, जिसे मीडिया में दिखाया जा रहा है, सच्चाई से कोसों दूर है क्योंकि दोनों अपने मतभेदों के बावजूद सह-अस्तित्व में हैं। अर्जी में कहा गया है कि अभी दो सशस्त्र साम्प्रदायिक समूह आदिवासियों पर सुनियोजित तरीके से हमले कर रहे हैं। दोनों का संबंध राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी से है।
एनजीओ ने असम पुलिस के पूर्व प्रमुख हरेकृष्ण डेका की अध्यक्षता में एक विशेष जांच टीम गठित करने और प्रत्येक व्यक्ति के परिजन को दो दो करोड़ रुपये की अनुग्रह राशि देने का अनुरोध किया है। संगठन ने मारे गये लोगों के परिवार के एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की भी मांग की है।
शीर्ष न्यायालय ने 17 मई को मणिपुर सरकार को निर्देश दिया था कि वह जातीय हिंसा से प्रभावित राज्य में विश्वास बहाली, शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए। उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा था कि शीर्ष न्यायालय होने के नाते वह सुनिश्चित कर सकता है कि राजनीतिक मशीनरी स्थिति को लेकर “आंखें ना मूंदे।”
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के कथित भड़काऊ भाषणों के संबंध में सौंपे गए साक्ष्यों पर संज्ञान लेते हुए शीर्ष न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा था कि संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को संयम बरतने की सलाह दें।