बालासोर। ओडिशा के बालासोर में कल शाम एक भीषण ट्रेन हादसा हुआ, जहां बहनागा स्टेशन के पास कोरोमंडल एक्सप्रेस और मालगाड़ी आपस में टकरा गई, जिसमें 261 लोगों की मृत्यु हो गई, जबकि एक हजार से ज्यादा लोग घायल हैं।
इस घटना के बाद, सोशल मीडिया पर, रेल मंत्री के इस्तीफे की मांग उठ रही है। ज्ञात हो कि नवंबर 1956 में तमिलनाडु में अरियालुर ट्रेन दुर्घटना में 142 लोग मारे गए थे। उस वक्त दुर्घटना के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
उसके बाद, अगस्त 1999 में असम में गैसल ट्रेन दुर्घटना में 290 लोगों की जान जाने पर तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार ने अपना पद छोड़ दिया था। लेकिन इस “अमृत काल” मे शायद ही कोई नैतिकता दिखेगी।
इस दुर्घटना ने भारत में रेलयात्रा एवं यात्रियों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े कर दिये हैं। कई राज्यों में वंदे भारत जैसी हाई-स्पीड ट्रेनें शुरू की जा रही हैं। क्या हमारा रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर इन ट्रेनों की रफ्तार को झेलने के लिए तैयार है? क्या दशकों पुरानी पटरियां एवं अंग्रेजों के जमाने के ब्रिजों के दम पर, हम बहुत बड़ा रिस्क नहीं ले रहे हैं?
क्या चीन, जापान एवं अन्य देशों की तरह हमारे रेलवे ट्रेक के दोनों ओर पूरी तरह से बैरिकेडिंग है, ताकि कोई भी व्यक्ति, पशु या वाहन अचानक बीच में आकर, दुर्घटना का कारण ना बन सके? अगर नहीं तो क्यों?
जिस “कवच” को रेल मंत्री यूरोपीय रेल सुरक्षा प्रणाली से बेहतर बताते थे, क्या वह इस प्रकार की घटनाओं पर रोक लगाने में सक्षम है? अगर आपके पास ऐसी कोई तकनीक है तो उसे हाई-स्पीड ट्रेनों में लगाने में क्या समस्या है? और अगर तकनीक नहीं है तो विदेशों से लेने में क्या हर्ज है?
रेल मंत्री जी, यह देश ऐसी दुर्घटनाएं सह नहीं पायेगा। रेलवे को रफ्तार के पीछे भगाने की जगह सुरक्षित सफर का एक साधन बनाइये। जिन्हें रफ्तार चाहिए, उनके लिए हवाई सफर का विकल्प उपलब्ध है।