उदयपुर (राजस्थान): प्रतापगढ़ जिले के धरियावद, पीपलखूंट और अरनोद के ठेठ आदिवासी अंचल में दूर-दूर तक आदिवासियों की झोपड़ियां हैं। यहां के आदिवासी समाज का रहन-सहन और उनकी संस्कृति देखने पर पता चलता है कि यहां कई सालों पहले से ही सोशल डिस्टेंसिग समेत ऐसे कई नियमों का पालन हो रहा है, जो इन दिनों कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए जरूरी है।
आदिवासी अंचल प्रतापगढ़ में इनके गांवों में घर कहीं पर भी पास-पास नहीं होते। यहां लोग बरसों से छितराई बस्ती में रहना पसंद करते हैं। प्रतापगढ़ आदिवासी बहुल जिला है। यहां भी काफी क्षेत्रों में आदिवासी परिवार हैं, जो ऊंची टेकरियों पर छितराई बस्ती में रहते हैं। आदिवासी समाज की संस्कृति में ही सोशल डिस्टेंसिंग रची-बसी है। चाहे एक परिवार में तीन भाई हो लेकिन तीनों के घर अलग-अलग जगह पर एक-दूजे से पर्याप्त दूरी पर बने होते हैं। इसके पीछे सोच यह रहती है कि भाई हो या रिश्तेदार, दूरी से स्नेह और प्यार बढ़ता है। इसके साथ ही पर्यावरण का प्रेम भी मिल पाता है। घरों की दूरी बनाने की एक वजह यह भी है कि घरों में आपसी दुरी से गर्मी के समय पर्यापत हवा और ठंड में सूरज की पर्याप्त किरणें घर में आ सके और समुदाय के लोग बिना पंखे और बिना हीटर के पर्यावरण की सहायता से इन सब का लाभ ले सके।
ये आदिवासी हाथ मिलाने की बजाय नमस्कार करना ज्यादा उचित समझते हैं। इसके अलावा जय जौहार, जय मालिक, जय गुरु बोलकर अभिवादन भी करते हैं। घर के बाहर चौकी या चबूतरे खास इसी कारण बनाए जाते हैं ताकि आने वाला मेहमान इन पर बैठे ना कि घर में। आदिवासी अंचल के लोगों की कई सालों से मान्यता है कि अगर घर अलग-अलग जगह और दूरी पर होगा तो किसी भी बीमारी के संक्रमण से बचा जा सकता है। साथ ही बीमारी के संपर्क में आने के बाद होने वाली मौत को भी टाला जा सकता है।
इन आदिवासियों द्वारा किए जाने वाले गैर नृत्य के दौरान भी यहां सोशल डिस्टेंसिंग का पहले से ही विशेष ध्यान दिया जाता है। आमतौर पर इस नृत्य में लोग अपने हाथ में लकड़ी की छड़ी के साथ एक बड़े वृत्त में नाचते हैं। यह नृत्य पुरुषों और महिलाओं दोनों की ओर से किया जाता है। नृत्य के प्रारंभ में प्रतिभागियों की ओर से एक बड़े चक्र के रूप में पुरुष घेरा बनाते हैं। इसके अंदर एक छोटा घेरा महिलाएं बनाती है और वाद्ययंत्रों के साथ ही संगीत की ताल के साथ घड़ी की विरोधी दिशा में पूरा घूमते हैं और लकड़ी को एक दूसरे से टकराते हैं।
इस दौरान सभी अपने घेरे में उचित दूरी बना कर रखते हैं। आदिवासी समाज में होने वाली सभा के दौरान भी उचित दूरी का विशेष ध्यान रखा जाता है। ये परंपरा आदिवासी समाज में कई सालों से है। आदिवासी अंचल में होने वाली सभा के दौरान सभी लोग एक मीटर से ज्यादा की दूरी पर बैठते हैं। प्रकृति का पूजन सबसे पहले आदिवासियों में ईश्वर की पूजा से पहले प्रकृति के पूजन का विधान रहा है। इसे आदिवासियों की परंपरा भी कहा जाता है। यहाँ रहने वाले आदिवासी कहते हैं कि उनके लिए सर्वप्रथम प्रकृति है, और किसी विनाश से रक्षा करने के लिए वो सबसे पहले प्रकृति की पूजा करते हैं। (जी न्यूज)