रतलाम। 50 साल तक आदिवासी परिवार एक कच्चे मकान में रहकर मजदूरी कर अपना परिवार पालता रहा और अचानक हाथ से जा चुकी 16 बीघा ज़मीन का मालिक हो गया। 50 साल से जमीन को लेकर विवाद था और एसडीएम कोर्ट के फैसले के बाद भी प्रशासन आदिवासी परिवार को इस पर कब्जा नहीं दिला पा रहा था। रतलाम के मौजूदा कलेक्टर के प्रयासों से उसे अब यह जमीन वापस मिल गई है जिसकी कीमत आज करीब 7 करोड़ रुपये है।
यह किसी फ़िल्म की कहानी नहीं बल्कि रतलाम में एक आदिवासी परिवार को 50 साल बाद मिले न्याय का सच है। यह न्याय भी रतलाम कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम के प्रयासों से किसान को मिल पाया। इस सराहनीय कार्य के लिए खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर कलेक्टर को धन्यवाद भी दिया।
रतलाम शहर से लगा एक गांव सांवलिया रुंडी है। यहां के आदिवासी दुधा भाभर से 1960 में रतलाम के एक व्यक्ति ने 16 बीघा ज़मीन की रजिस्ट्री करवा कर अपने नाम कर ली थी। इसके बाद दुधा भामर की मौत हो गई। उनके बेटे थावरा भामर सहित 4 भाई थे, जो काफी कम उम्र से ही मजदूरी में लग गए। थावर भामर ने अपनी ज़मीन वापस लेने के लिए अधिकारियों से मदद मांगी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। थावर ने एसडीएम के न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। साल 1987 में न्यायालय ने थावर भामर के पक्ष में फैसला भी दे दिया। लेकिन इस फैसले को लेकर कभी आगे की शासकीय प्रक्रिया नहीं की गई। आदिवासी थावर भामर का नाम राजस्व विभाग के रेकॉर्ड में दर्ज नहीं किया गया।
इस बीच थावर भामर के पारिवारिक के हालात बद से बदतर होते चले गए। उसके चार भाइयों में से दो की मौत हो गई। मजदूरी करते-करते थावर की उम्र भी करीब 70 साल हो गई है। कुछ दिनों पहले थावर रतलाम के कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम के पास अपनी ज़मीन के कागज़ लेकर पहुंचे। कलेक्टर ने ज़मीन संबंधी दस्तवेज और थावर को 10 दिन में ज़मीन पर कब्ज़ा दिलाने का आश्वासन दिया।
थावर को पहले तो यह भी झूठा आश्वासन ही लगा, लेकिन सात दिन बाद ही कलेक्टर ने उसे अपने कार्यालय बुलावाकर ज़मीन के कागज़ सौंप दिए। मजदूरी कर मुफलिसी में जीवन गुजरने वाला एक आदिवासी परिवार आज 16 बीघा ज़मीन का मालिक हो गया है, जिसकी अनुमानित कीमत खुद कलेक्टर ने 7 करोड़ रुपये बताई है।
थावर भूरिया आज अपने खेत में है और ज़मीन को हाथ जोड़ कर अपने पूर्वजों और देवी देवताओं की पूजा कर उनका धन्यवाद दे रहा है। थावर खुद यकीन नहीं कर पा रहा कि इतने सालों बाद उसे न्याय मिल भी सकता था। सिस्टम से निराश और विश्वास खो चुका किसान न्यायपालिका और अधिकारियों का आभार व्यक्त करते नहीं थक रहा।
कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम ने बताया कि आदिवासी किसान की ज़मीन को एक व्यक्ति ने हथिया लिया था। इसको लेकर आदिवासी परिवार 50 साल से परेशान था। 1987 में एसडीएम कोर्ट ने आदिवासी थावर के पक्ष में फैसला दिया था। इसके बाद कमिश्नर व राजस्व मंडल ने भी उसके पक्ष में फैसले पर ही सहमति दी, लेकिन किसी अधिकारी ने इस दौरान राजस्व में ज़मीन को लेकर नाम दर्ज नहीं किया गया। कुछ दिन पहले ही आदिवासी थावर मेरे पास आये और अपनी ज़मीन के दस्तावेज दिखाए। हमने एसडीएम, तहसीलदार और पटवारी की टीम बनाकर पुराने फैसले और दस्तावेज के आधार पर आदिवासी परिवार का उसकी ज़मीन पर नाम दर्ज करवाया और कब्ज़ा दिलवाया।