जमशेदपुर। पूर्वी सिंहभूम जिले का महात्मा गांधी मेमोरियल कॉलेज और अस्पताल (MGMCH), इस क्षेत्र का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है। लगभग 500 बेड का यह अस्पताल आये दिन अपनी अव्यवस्था को लेकर सुर्खियों में रहता है। हमने अस्पताल के वर्तमान और भूतपूर्व अधिकारियों, डॉक्टरों और कर्मचारियों से बात कर के, इस अस्पताल से जुड़ी दिक्कतों को समझने का प्रयास किया। देवघर में एम्स खुलने, व कोरोना वायरस की तीसरी लहर की तैयारियों के बीच, यह रिपोर्ट हर झारखंडी को पढ़नी चाहिए।
कभी स्ट्रेचर, कभी एम्बुलेंस, कभी डॉक्टरों, तो कभी सुविधाओं की कमी की वजह से चर्चित इस अस्पताल ने कई मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री देखे, लेकिन इस के तकलीफ का इलाज कोई नहीं कर पाया। रघुबर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा, तीन मुख्यमंत्री इस क्षेत्र से हुए, लेकिन उनके शासनकाल में अस्पताल की हालत बदतर होती चली गई। झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के गृह जिले में स्थित इस अस्पताल पर अगर सरकारी उपेक्षा के आरोप लग रहे हैं, तो इसका जिम्मेदार कौन है?
सच्चाई यह है कि हर दिन तकरीबन 1200 लोगों का इलाज करने वाला यह अस्पताल खुद भी, काफी बीमार है। क्या आप जानते हैं कि इस अस्पताल में कर्मचारियों की भारी कमी है? उदाहरण के तौर पर, यहाँ ए-ग्रेड नर्स के करीब साढ़े तीन सौ स्वीकृत पद हैं, लेकिन उसमें से 90% खाली हैं, जिनकी भरपाई आउटसोर्सिंग वाले कर्मचारियों से की जा रही है। हद तो यह है कि ड्रेसर के स्वीकृत 10 पदों में, सभी खाली हैं, तो ड्रेसिंग और स्टिचिंग का काम भी, एक निजी कर्मचारी के जिम्मे है।
अगर डॉक्टर ने सीटी-स्कैन लिख दिया, तो आपको मरीज को लेकर बाहर जाना होगा, क्योंकि यहाँ सीटी-स्कैन की मशीन खरीदी तो गई थी, लेकिन रख-रखाव (मेंटेनेन्स) के अभाव में, वह भी खराब पड़ी हुई है। कई ऐसी अन्य मशीनें हैं, जो खराब हैं, क्योंकि किसी ने उन पर ध्यान नहीं दिया। अधिकतर विभागों में, ज्यादातर पद खाली हैं, और उनकी जगह निजी आउटसोर्सिंग एजेंसियों के सैकड़ों लोग कार्यरत हैं।
अस्पताल के एक वरिष्ठ अधिकारी सवाल करते हैं कि जब भी अस्पताल किसी गलत कारण से खबरों में आता है, तब हर कोई हमें जिम्मेदार ठहराने लगता है, लेकिन आउटसोर्स किये गए कर्मचारियों के बल पर हम कर भी क्या सकते हैं? जब यहाँ अधिकतर पद खाली हैं, तो सरकार नियुक्ति क्यों नहीं करती? हमारे पास कई विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, जो कई तरह की सर्जरी करने में सक्षम हैं, लेकिन बिना नर्सिंग स्टाफ, बिना मशीनों, बिना सुविधाओं के, आप उनसे क्या उम्मीद कर सकते हैं?
इस अस्पताल में इलाज करवाने वाले अधिकतर मरीज आदिवासी, मूलवासी और गरीब तबकों से आते हैं, लेकिन अफसोस यह है कि आदिवासियों के नाम पर बने इस राज्य के सरकारों की प्राथमिकता में, शायद यह अस्पताल कहीं नहीं है।
अस्पताल से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कोरोना काल में हजारों जिंदगियां बचा कर, हमने स्वयं को साबित किया है, और हम इससे भी बेहतर सेवायें देने में सक्षम हैं, लेकिन सरकार हमें कर्मचारी, मशीनें और सुविधाएं तो दे। किसी भी गलती के बाद हम पर अंगुली उठाना आसान है, लेकिन सरकार अगर थोड़ा सा ध्यान दे, तो डॉक्टरों की बेहतर टीम के दम पर, हम निजी अस्पतालों के समकक्ष स्वास्थ्य सेवा देने में सक्षम हैं। स्वास्थ्य मंत्री जी, क्या आप सुन रहे हैं?