खंडवा। आम, पपीता, ककड़ी, तरबूज, टमाटर, कॉफी और दार्जलिंग की चायपत्ती से निर्मित साबुन, न तो आपने देखी होगी और ना ही इसके बारे में कहीं सुना होगा। मगर मध्य प्रदेश के खंडवा जिले की महिलाएं ऐसी ही बीस से ज्यादा फ्लेवर वाली इको फ्रेंडली साबुन बना रही हैं। इस एक साबुन का मूल्य 350 रुपए तक है। बड़ी बात यह है कि इनकी साबुन के लिये अमेरिका से भी ऑर्डर आया है।
दरअसल, पंधाना विधानसभा क्षेत्र के ठेठ आदिवासी गांव उदयपुर की रहने वाली महिला रेखाबाई बराडे, ताराबाई भास्कले और काली बाई कैलाश ने गांव के एक छोटे से कमरे में 3 वर्ष पूर्व यह कार्य शुरू किया था। वे पूरे दिन खेतों में सोयाबीन काटती और रात में बकरी के दूध और अन्य जड़ी-बूटियों से साबुन तैयार करने की ट्रेनिंग लेतीं। कई बार साबुन बनाने का प्रयास किया, किन्तु सफलता कोसों दूर थी। ऊपर से अपनों की बातें सुनना सो अलग, मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और एक साल बाद साबुन बनाने में कामयाबी पा ही ली।
इसके बाद उन्होंने, बकरी के दूध और आयुर्वेदिक वस्तुओं से साबुन बनाने की योजना पर काम आरंभ किया। मगर सफलता नहीं मिली। इसके बाद कई बार उत्पाद फेल हुए और इसी ने सफलता की नींव रखी। संघर्ष के दिनों को याद करते हुए रेखाबाई बताती है कि शुरुआत में सभी ने उनकी काफी हंसी उड़ाई। घर के लोगों ने भी साथ नहीं दिया। इसलिए हम तीनों महिलाएं दिन में खेतों में सोयाबीन काटती और रात के समय साबुन बनाना सीखती थीं। काम चल निकला और आज इनके बनाए साबुन देश के मेट्रो सिटी बिक रहे हैं। इनके बनाए एक साबुन की कीमत 250 रुपए से लेकर 350 रुपए तक है।
अमेरिका से भी साबुन का ऑर्डर आया
भावती बताती हैं कि इको फ्रेंडली साबुन में सुगंधित तेल और फ्लेवर के लिए आम, तरबूज आदि चीजें मिलाई जाती हैं। इसलिए थोड़ा महंगा है। ईको फ्रेंडली साबुन की पैकिंग भी जूट की थैलियों में की जाती है। पैकिंग के वक्त घास में इसके डिब्बों को रखा जाता है। इसे वे ऑनलाइन वेबसाइट के माध्यम से बेचती हैं। हाल ही में अमेरिका से ऑर्डर आया है, एक्सपोर्ट के नियम पता कर इन्हें विदेश भी भेजेंगे। आर्थिक स्थिति भी सुधर गई। अब गांव की अन्य महिलाओं को भी इससे जोड़ना है, लेकिन हमारे पास पर्याप्त संसाधन और जगह की कमी है। फिलहाल एक दिन में 33 साबुन बना लेते हैं, लेकिन रखने के लिए जगह नहीं है, इसलिए बनाने का काम रुका है। अभी पैकिंग की जा रही है।