रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने भगवान बिरसा मुंडा के खूंटी जिले में स्थित गांव उलीहातू में बिरसा किसान विकास एवं बिरसा हरित गांव योजना के क्रियान्वयन को बढ़ावा देने की पहल शुरू की है। इसके तहत विवि के प्रसार शिक्षा निदेशालय एवं नाहेप – कास्ट परियोजना के सौजन्य से उलीहातू गांव में बांस की खेती पर कृषक गोष्ठी सह पौधारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
मौके पर बीएयू वैज्ञानिकों के दल ने गांव में बांस की व्यावसायिक खेती के इच्छुक जनजातीय किसानों को कृषक गोष्ठी के माध्यम उन्नत तकनीकी जानकारियों से अवगत कराया। फॉरेस्ट्री कॉलेज वैज्ञानिक डॉ रास बिहारी साह ने बांस के उन्नत नुतन प्रजाति, वृक्षारोपण तकनीक, बांस रोपाई पूर्व गड्ढे में चुना, गोबर एवं कीटनाशी दवा का प्रयोग, पौधों की देखभाल एवं जंगली जानवरों से बचाव की जानकारी दी।
वहीं वानिकी वैज्ञानिक डॉ बसंत उरांव ने छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए बांस की खेती से कुटीर उद्योग एवं उद्यमिता विकास की संभावनाओं के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि आदिवासी समाज में केवल बांस से पारंपरिक सूप आदि का निर्माण किया जाता है। मगर इनके हैंडिक्राफ्ट की मांग देश के विभिन्न कोने के साथ विदेशों में भी है। उन्होंने बांस से बनने वाले मेज-कुर्सी और डाइनिंग टेबल के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जल्द किसानों के इसके निर्माण तकनीक को समझाने के लिए प्रशिक्षण देने की कोशिश की जाएगी।
कृषक गोष्ठी में उलीहातू गांव हेतु नोडल पदाधिकारी डॉ बंधनु उरांव ने कम लागत में पशुधन आवास निर्माण में बांस की उपयोगिता तथा पशुधन के रख-रखाव एवं प्रबंधन की जानकारी दी।
इस अवसर पर गांव से चयनित 30 जनजातीय किसानों को 5 – 5 नुतन प्रजाति के बांस के पौधे को अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण हेतु वितरित किया गया। साथ ही, जनजातीय किसानों को पशु औषधी भी प्रदान किया गया। डॉ बंधनु उरांव ने बताया कि पिछले दो वर्ष में गांव के लोग पारंपरिक खेती के साथ आय के साधन बढ़ाने वाले खेती तकनीक और पशु पालन के महत्व को समझने लगे हैं। वहीं कई किसानों के आर्थिक स्थिति में हुए सुधार को देखकर भी किसानों को प्रेरणा मिली है। उन्होंने किसानों को बिरसा कृषि विवि के द्वारा मिलने वाली सहायता और उन्नत कृषि तकनीक के बारे में भी जानकारी दी। (साभार: जागरण)