रांची। बोकारो, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला- खरसावां समेत झारखंड के कई जिलों में वृद्ध व्यक्तियों, दिव्यांगों और विधवा महिलाओं को राज्य सरकार की ओर से दिये जाने वाले पेंशन के लाभार्थियों का ‘कोटा’ समाप्त हो गया है, तो कई अन्य जिलों में यह समाप्ति के कगार पर है, जिसकी वजह से, जिला प्रशासन इन कल्याणकारी योजनाओं में नये लाभुकों का नाम नहीं जोड़ पा रहा है।
दिव्यांगों के मामले में प्रशासन के पास केंद्र सरकार द्वारा दिए जा रहे पेंशन का विकल्प उपलब्ध है, लेकिन उसमें पेंच यह है कि केंद्र सरकार की पेंशन सिर्फ उन्हीं दिव्यांगजनों को दी जा सकती है, जो गरीबी रेखा के निचे आते हों, और जिसके पास BPL कार्ड हो। जबकि राज्य सरकार की पेंशन हर वर्ग के लोगों के लिए उपलब्ध है, तो इस वजह से ज्यादातर लोगों को केंद्र की योजना का लाभ नहीं मिल पाता।
राज्य के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के अनुसार, हर साल ज्यादातर जिले जून-जुलाई तक ‘कोटा’ खत्म कर लेते हैं, और हर ब्लॉक में इमरजेंसी के मामलों के लिए 100-150 लाभुकों के लिए कोटा बचा कर रखा जाता है, जो बाकी साल भर के लिए पर्याप्त होता है। लेकिन इस साल, सोशल मीडिया के माध्यम से सैकड़ों मामले मिले, जिसकी वजह से, वह कोटा भी खत्म हो गया।
एक गैर-सरकारी संस्था के अनुसार – समाज कल्याण की ये योजनायें सरकार की उस कल्याणकारी नीति का हिस्सा हैं, जिसमें सरकार हर वंचित व्यक्ति की सहायता करती है। चूंकि वृद्धों, विधवा महिलाओं और विशेषकर दिव्यांगों के साथ समाज की संवेदनायें जुड़ी होती हैं, इसलिए इसके लाभुकों को पेंशन मिलने में हो रही देरी, कहीं ना कहीं, सरकार की छवि पर भी असर डालती है।
कई जिलों के अधिकारियों ने, इस संबंध में राज्य सरकार के समाज कल्याण विभाग को पत्र लिखा है, और उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही नया ‘कोटा’ दिया जायेगा, ताकि वे नए लाभुकों को जोड़ सकें। एक सामाजिक सर्वे के अनुसार, राज्य में ऐसे हजारों लोग हैं, जो इस पेंशन की पात्रता को पूर्ण करते हैं, लेकिन ‘कोटा’ के अभाव में, उनके आवेदन, विभिन्न सरकारी दफ्तरों में, धूल फांक रहे हैं।