किलेपाल (जगदलपुर)। बस्तर जिले के बास्तानार ब्लाक के वनों में बसे गांव सबसे दुर्गम इलाकों में शुमार हैं। अंदरूनी गांवों में पहुंचमार्ग नहीं हैं। नदी-नाला पैदल पार करना होता है। ऐसे इलाके में महिला एएनएम (स्वास्थ्य कार्यकर्ता) रोशमा लकड़ा आदिवासियों की लाडली बन गई हैं। हाइवे से करीब सात किमी अंदर बसे बोदेनार व बड़े बोदेनार ग्राम पंचायतों के 19 पारा में बसे करीब तीन हजार आदिवासियों के लिए वह किसी मसीहा से कम नहीं हैं। ये दोनों गांव पहुंचविहीन हैं। घने जंगल, पहाड़ों और नदी नालों के बीच बसे इन गांवों तक जाने के लिए पैदल ही चलना पड़ता है। रास्ते में रोड़े नदी को भी पैदल पार करना होता है।
इतने दुर्गम इलाके में मजाल है कि एएनएम रोशमा कभी नागा करती हों। उनकी तारीफ सिर्फ ग्रामीण ही नहीं करते, स्वास्थ्य विभाग के अफसर भी उनके काम की प्रशंसा करते हैं। मूलरूप से जशपुर की रहने वाली रोशमा यहां पांच साल से पदस्थ हैं। वंचित इलाके में सेवा में उनका मन इतना रमा कि अब वह वहीं बस गई हैं। लोगों से जुड़ने के लिए उन्होंने बस्तर की बोलियों गोंडी व हलबी को भी सीखा है। वह लोगों से उनकी भाषा में संवाद करने की वजह से उनके घरों की सदस्य जैसी बन गई हैं।
रोशमा का काम आसान नहीं है। दोनों पंचायतों के 19 पारे एक दूसरे से काफी दूर-दूर बसे हैं। सभी जगह पहुंचने के लिए उन्हें करीब 15 किमी पैदल चलना पड़ता है। वह लगभग हर दिन गांव जाती हैं। राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम, गर्भवती माताओं का संस्थागत प्रसव, बीमारों को मौके पर दवा देना, ज्यादा बीमार लोगों को अस्पताल पहुंचाना आदि काम उनके जिम्मे है।
सरपंच लक्ष्मी मरकाम, रोड़ापारा की पंच राधा, ग्रामीण दसो, बोदो, राजू आदि ने बताया कि रोशमा घर-घर जाकर बीमारों का हाल देखती हैं। सभी को घर से गांव के अपने सेंटर लेकर जाती हैं और स्वास्थ्य परीक्षण कर दवा देती हैं। जो ज्यादा बीमार होते हैं उन्हें किलेपाल अस्पताल लेकर जाती हैं। इन गांवों में आठ आंगनबाड़ी, सात प्राथमिक स्कूल, दो माध्यमिक स्कूल, एक बालक आश्रम व एक कन्या आश्रम हैं। इन संस्थाओं में 15 दिन में विजिट करती हैं। छह माह के अंतराल में बच्चों को कृमि दवा देती हैं। अभी 30 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण माह चल रहा है। इस अभियान में नौ माह से पांच साल के बच्चों को विटामिन व आयरन की गोली व एल्बेंडाजोल सिरप पिला रही हैं। गर्भवती माताओं को आयरन व कैल्शियम की गोली दे रही हैं।
जागरूक हो रहे आदिवासी
बास्तानार ब्लाक के इस दुर्गम इलाके में आम तौर पर ग्रामीण झाड़ फूंक पर यकीन करते रहे हैं मगर स्वास्थ्य विभाग के जागरूकता कार्यक्रमों व रोशमा जैसी कर्मठ स्वास्थ्यकर्मियों की मेहनत ने हालत बदले हैं। आदिवासी अब जागरूक हो रहे हैं। पोषण माह के तहत जनप्रतिनिधि, अधिकारी, आमजन सभी मिलकर लोगों तक पोषण का संदेश पहुंचा रहे हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व मितानिन सभी के घर जा रही हैं। किशोरी बालिका जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है।
रोशमा कहती हैं कि गर्भवती माताओं की प्रसव पूर्व जांच, गर्भावस्था के दौरान रखी जाने वाली सावधानियां, स्वच्छता का संदेश, उम्र व वजन के अनुसार डाइट आदि कार्यक्रमों से स्वास्थ्य के मामले में काफी बदलाव आया है। माताओं को स्तनपान कराने के लिए प्रेरित किया गया, बच्चों को कुपोषण से बाहर निकालने के लिए नियमित आंगनबाड़ी भेजने, गर्म व पौष्टिक भोजन देने आदि की सीख वह माताओं को देती हैं।
अकेली सम्भाल रहीं व्यवस्था
ब्लाक मेडिकल आफीसर प्रदीप बघेल कहते हैं कि सिस्टर रोशमा सुदूर इलाके के सेंटर में अकेली रहकर सेवा दे रही हैं। स्थानीय बोली सीखने की वजह से वह लोगों से जुड़ गई हैं। वह हमेशा काम पर उपस्थित रहती हैं। ब्लाक प्रोग्राम आफीसर राजेंद्र नेताम भी उनकी तारीफ करते हैं। वह कहते हैं कि रोशमा का कोई काम अपूर्ण नहीं होता है। जब भी फील्ड चेकिंग में गया हूं उन्हें हमेशा काम करते पाया है। (नई दुनिया)