श्योपुर। श्योपुर जिला फिर मध्य प्रदेश का सिर शर्म से झुका रहा है। यहां बच्चों में कुपोषण (Malnutrition) के हालात भयावह हैं। इस वक्त पूरे जिले में 27 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, जिसमें से 5 हजार से ज्यादा की हालत बेहद गंभीर है।
मध्य प्रदेश का आदिवासी बहुल जिला श्योपुर कुपोषण के कारण बदनाम है। यहां कुपोषण खत्म करने के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन नतीजा सिफर है। हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं, जिसकी वजह से हर साल अनगिनत कुपोषित बच्चों की मौत हो रही है।
27 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषित
इन दिनों जिले के अलग-अलग इलाकों से अति कुपोषित बच्चे NRC लाए जा रहे हैं। उन्हें देखकर हर कोई सिस्टम पर सवाल उठा रहा है। जिले भर में 81 हजार 816 बच्चे आंगनबाड़ी केंद्रों में दर्ज हैं। इनमें 27 हजार से ज्यादा कुपोषित हैं, और 5 हजार से ज्यादा गंभीर कुपोषित हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग के आंकड़ों की अगर बात की जाए तो सामान्य पोषण स्तर वाले 69 हजार 738 बच्चे हैं। इनमें से 1920 मध्यम गम्भीर और 326 अति गम्भीर कुपोषित बच्चे हैं। यह हालात मौजूदा स्थिति में हैं, जिन्हें देखकर लोग महिला एवं बाल विकास विभाग से लेकर जिले के उन जिम्मेदार अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहे हैं, जो कुपोषण कम होने का दावा कर रहे हैं।
मॉनिटरिंग की कड़ी व्यवस्था फिर भी…
सरकार कुपोषण मिटाने के लिए आदिवासी समाज की मुखिया महिलाओं को पोषण आहार के अलावा हर महीने एक-एक हजार रुपये की राशि खाना पकाने के लिए दे रही है। साथ ही महिला एवं बाल विकास विभाग से लेकर कलेक्टर तक की जिम्मेदारी इसकी मॉनिरिंग करने की है। लेकिन कुपोषण का कलंक मिटाए नहीं मिट रहा है।
नौनिहालों की हालत गंभीर
इन दिनों कराहल और विजयपुर इलाकों के गांवों से अति गम्भीर कुपोषित बच्चे एनआरसी केंद्रों में लाए गए हैं। अगर उन्हें समय रहते एनआरसी केंद्रों में भर्ती कराया गया होता तो इस तरह से उनकी हालत खराब नहीं हुई होती। कुपोषण से जिले भर के अनगिनत नौनिहालों की हालत बेहद गंभीर है। कलेक्टर शिवम वर्मा का कहना है कि, अभी इस तरह के मामले हमारे संज्ञान में आए हैं। बच्चों को एनआरसी केंद्र में भर्ती कराया जा रहा है। इसके साथ ही स्वास्थ्य और महिला एवं बाल विकास विभाग को एकसाथ काम करने के निर्देश भी दिए हैं। (न्यूज18)