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नाराज आदिवासियों को मनाने की कोशिश है पीएम मोदी की दाहोद रैली

अहमदाबाद। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार से 3 दिवसीय गुजरात दौरे पर हैं। पीएम कल शाम यहां पहुंचें। वे यहां सबसे पहले गांधीनगर में स्कूलों के कमांड एंड कंट्रोल सेंटर का दौरा करेंगे और अगले दिन इसका लोकार्पण करेंगे। पीएम दूसरे दिन यानी 19 अप्रैल को जीस में बनास डेयरी प्लांट का उद्घाटन करेंगे और पशुपालक बहनों से बातचीत करेंगे। बाद में 20 अप्रैल को पीएम दाहोद में आदिवासी रैली को भी संबोधित करेंगे। मोदी का आयुष मंत्रालय के कार्यक्रम में शामिल होने भी प्रस्तावित है।

पीएम के दाहोद दौरे को बेहद खास माना जा रहा है। क्योंकि सालों से जो आदिवासियों को कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता रहा है, उसे इस बार 2022 के चुनाव में बीजेपी अपने पाले में करना चाहती है और 150+ सीटों के टारगेट को पूरा करना चाहती है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री का ये दौरा काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पीएम मोदी 9 हजार एचपी इलेक्ट्रिक इंजन (9000 HP Electric locomotives) उत्पादन यूनिट के प्लांट का शिलान्यास करेंगे। इससे यहां के आदिवासी इलाके में 10 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार उपलब्ध होगा। इसके साथ ही 550 करोड़ रुपए की पीने के पानी की सप्लाई, 300 करोड़ के स्मार्ट दाहोद सीटी प्रोजेक्ट और 175 करोड़ की लागत के दुधीमाता नदी के प्रोजेक्ट का भी शिलान्यास करेंगे।

आदिवासी समाज पर BJP, कांग्रेस और AAP की भी नजर
गुजरात में अगर आदिवासी वोट बैंक की बात की जाए तो करीब 15% आबादी है, जिसका गुजरात की 27 से ज्यादा सीटों पर सीधा असर देखने को मिलता है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही इसे अपनी तरफ खींचने की कोशिश में रहती हैं। इस बार आम आदमी पार्टी भी मैदान में है। AAP की कोशिश है कि वह आदिवासियों की पार्टी भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) के साथ समाज का वोट बैंक अपने पाले में खींच कर लाए। संभावना है कि AAP चुनाव में BTP के साथ गठबंधन कर सकती है।

कांग्रेस ने आदिवासी नेता को बनाया नेता प्रतिपक्ष
आदिवासी वोट बैंक को सालों से कांग्रेस का पारंपारिक वोट बैंक माना जाता है। कांग्रेस भी इस बार अपने वोट बैंक किसी ना किसी तरह बनाए रखना चाहती है। यही वजह है कि जब गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन हुआ तो कांग्रेस ने भी अपने विपक्ष के नेता को बदल दिया और आदिवासी नेता सुखराम राठवा को विपक्ष का नेता बना दिया।

आदिवासी समाज को खासा महत्व दे रही BJP
कांग्रेस ने भी BTP के युवा नेता राजेश वसावा को अपनी पार्टी में शामिल कराया तो बीजेपी ने अपनी नई सरकार में 5 आदिवासी नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह दी। साथ में केंद्र सरकार ने सांसद गीताबेन राठवा को BSNL का अध्यक्ष बनाया है। आने वाले दिनों में बीजेपी की कोशिश है कि वह संगठन और सरकार में आदिवासी समाज के नेताओं को ओहदेदार पद दे और समाज के वोट बैंक को अपने पाले में खींचकर लाए।

आदिवासियों में कांग्रेस की गहरी पैठ
गुजरात विधानसभा की कुल 182 सीटों में से 27 पर आदिवासियों का दबदबा माना जाता है। 2007 में कांग्रेस ने 27 में से 14 सीटें जीती थीं। 2012 के चुनाव में भी कांग्रेस ने 16 सीटें जीतकर अपना प्रभाव बनाए रखा। हालांकि, 2017 के चुनाव में कांग्रेस को थोड़ा नुकसान उठाना पड़ा और 14 सीटें हासिल कीं। जबकि बीजेपी को सिर्फ 9 सीटों पर ही जीत मिल पाई थी। अब तक के ट्रेंड को देखा जाए तो कहा जा सकता है कि आदिवासी समाज में अब भी कांग्रेस की अच्छी खासी पकड़ है।

छोटू भाई वसावा को हराने की जिम्मेदारी सांसद मनसुख को
आदिवासी नेता छोटूभाई वसावा भरुच जिले की झगड़िया की सीट से विधायक बनते आ रहे हैं। उनको हराना किसी भी पार्टी के लिए मुश्किल माना जाता रहा है। इस बार भाजपा छोटू वसावा को भी हराने के लिए रणनीति बना रही है। भाजपा ने वसावा के समर्थक और नेताओं को भी पार्टी में शामिल कराया है। छोटू वसावा की बीटीपी के वोटबैंक में सेंध लगाने की जिम्मेदारी भाजपा ने सांसद मनसुख वसावा को दी है। क्योंकि वे हर मुद्दे पर बीटीपी को घेरते हुए देखे जाते हैं। भरुच नर्मदा जिले से कई बीटीपी के नेताओं को बीजेपी में शामिल कराया गया है, उसका फायदा पंचायत चुनाव ने बीजेपी को मिला है।

दक्षिण गुजरात के प्रोजेक्ट पर नाराज हो गया था आदिवासी समाज
गुजरात में पिछले पांच साल में कई ऐसे प्रोजेक्ट हैं जिसे लेकर आदिवासी समाज बीजेपी से नाराज देखा गया है। दक्षिण गुजरात में तापी नर्मदा रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट को लेकर काफी विरोध प्रदर्शन देखने को मिला। हजारों आदिवासी समाज के लोग सड़कों पर उतर आए थे। काफी विरोध होने पर सरकार ने डैमेज कंट्रोल किया और आखिरकार इस फैसले को स्थगित करना पड़ गया था।

…जब स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के सीईओ को बदलना पड़ा
आदिवासी के मुद्दे की बात करें तो नर्मदा जिले में इको सेंसेटिव जोन का मुद्दा है। वह भी बीजेपी के लिए गले की फांस बन चुका है। चुनाव में ये मुद्दा बीटीपी हमेशा उठाती रही है। साथ मे स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के एरिया में आदिवासी गांवों की समस्या का अभी भी कोई निपटारा नहीं हो पाया है। यहां के डिप्टी कलेक्टर के आदिवासियों के बारे में कथित बयानबाजी से विवाद गहरा गया था। आदिवासियों के विरोध को देखते हुए सरकार को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के सीईओ को बदलना पड़ा था।

कांग्रेस को अहमद पटेल की कमी खलेगी
कांग्रेस के लिए इस बार आदिवासी वोट बैंक बड़ी चुनौती माना जा रहा है। क्योंकि हर बार भरुच से आने वाले अहमद पटेल यहां के पूरे हालात को खुद देखते थे। मगर उनके निधन के बाद पार्टी की तरफ से कोई ऐसा नेता ज्यादा एक्टिव नहीं देखा गया। अहमद पटेल की कमी भी इस बार कांग्रेस के लिए मुश्किल है।

आदिवासियों का इन इलाकों में खासा प्रभाव
विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री दाहोद पहुंच रहे हैं। वे यहां से पांच जिले के आदिवासियों को संबोधित करेंगे। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री तापी नर्मदा रिवर लिंक प्रोजेक्ट का जिक्र करेंगे, क्योंकि यही प्रोजेक्ट है, जिसे लेकर आदिवासी ज्यादा विरोध कर रहे हैं। गुजरात के बनासकांठा, साबरकांठा, अरवल्ली, महिसागर, पंचमकाल दाहोद, छोटाउदेपुर, नर्मदा, भरूच , तापी, वलसाड, नवसारी, डांग, सूरत जिले में आदिवासी समाज का अच्छा खासा प्रभाव है। (आज तक से इनपुट के साथ)

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