केरल के वायनाड की 23 साल की इस आदिवासी क्रिकेटर के लिए यह किसी सपने के सच होने जैसा है। वुमेंस प्रीमियर लीग (WPL) की नीलामी में चुने जाने के बाद मिन्नू मणि ने मीडिया से बातचीत में कहा- “मैंने अपनी जिंदगी में कभी 30 लाख रुपये नहीं देखे। मैं फिलहाल कैसा महसूस कर रही हूँ, ये बताने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं।”
मिन्नू की राह में एक के बाद एक बाधाएं आईं, लेकिन उन्होंने संघर्ष नहीं छोड़ा। क्रिकेटर बनने के लिए उन्होंने माता-पिता से झूठ बोला, रोजाना चार बसों को बदलकर 80 किलोमीटर का सफर तय किया। एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने क्रिकेट छोडऩे की सोची, लेकिन उनकी ऊर्जा ने हताशा को हावी नहीं होने दिया। बेहद गरीब परिवेश से आने वाली आज वही मिन्नू 30 लाख रुपये में महिला प्रीमियर लीग के लिए दिल्ली कैपिटल्स का हिस्सा हैं।
मिन्नू के पिता दिहाड़ी मजदूर हैं
वायनाड से यहाँ तक का सफर मिन्नू मणि के लिए आसान नहीं रहा। मिन्नू वायनाड की कुरिचिया जनजाति से है, और उनके पिता दिहाड़ी मजदूर हैं। जब मिन्नू 10 साल की थीं, तब उन्होंने धान के खेतों में अपने भाइयों के साथ क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। लेकिन खेल को संजीदगी से 8वीं क्लास में लेना शुरू किया। उस वक्त वो इडापड्डी के एक सरकारी स्कूल में पढ़ती थीं। स्कूल की फिजिकल एजुकेशन टीचर अलासम्मा बेबी ने सबसे पहले मिन्नू का टैलेंट पहचाना और उसे वायनाड जिले की अंडर-13 टीम के सेलेक्शन ट्रायल में लेकर गईं। लेकिन माता-पिता मिन्नू के क्रिकेट खेलने के खिलाफ थे।
‘यह लड़कों का खेल है, तुम नहीं खेल पाओगी’
माता-पिता कहते थे कि ये लड़कों का खेल है, तुम इसे नहीं खेल सकतीं। वह घर पर कहती थीं कि उनकी स्कूल में अतिरिक्त कक्षाएं लगनी हैं। मैदान उनके घर से 42 किलोमीटर दूर था। उन्हें वहां तक पहुंचने में डेढ़ घंटा लगता था। इसके लिए वह चार बसों को बदलती थीं। इससे उन्हें काफी थकान होती थी। वह सुबह चार बजे उठकर मां के साथ खाना बनाती थीं और पौने सात बजे घर छोड़कर नौ बजे मैदान पर पहुंचती थीं। दो बजे तक अभ्यास करने के बाद वह वापस घर लौटती थीं।
बाएं हाथ की बल्लेबाज और दाएं हाथ की ऑफ स्पिनर मिन्नू बताती हैं कि उन्हें सिर्फ रविवार को आराम का मौका मिलता था, लेकिन जब उन्हें स्थानीय स्तर पर कुछ सफलता मिलने लगी तो उनके माता-पिता ने उन्हें प्रोत्साहित किया और उन्हें खिलाने के लिए लोन लिया। बेहद गरीब परिवार से आने वाली मिन्नू अपने माता-पिता की मदद करना चाहती हैं। वह कहती हैं उन्होंने बेहद गरीबी के दिन देखे हैं।
बाढ़ में बह गया घर
मिन्नू का सपना देश के लिए खेलना है। वह भारत ए के लिए बांग्लादेश के खिलाफ खेल चुकी हैं। यहां से उन्हें पांच लाख रुपये की मैच फीस भी मिली। शुरुआती मैचों से मिली फीस से उन्होंने उन्होंने गांव में माता-पिता के लिए घर बनवाना शुरू किया। लेकिन 2018-19 में आई बाढ़ ने इसे खत्म कर दिया। बांग्लादेश के खिलाफ मिली मैच फीस से उन्होंने इसे दोबारा बनवाया है।
आईपीएल कॉन्ट्रैक्ट मिलते ही ज्यादातर खिलाड़ी महंगी गाड़ियां या घर खरीदते हैं। लेकिन मिन्नू की ख्वाहिश छोटी सी है। वो एक स्कूटर खरीदना चाहती हैं। इससे उन्हें प्रैक्टिस के लिए जो रोज 4 बस बदलनी पड़ती है, उस परेशानी से निजात मिल जाएगी। आने-जाने में जो वक्त लगता है, वो बचेगा और वो अपनी ट्रेनिंग पर और ज्यादा ध्यान दे पाएंगी।