Connect with us

Hi, what are you looking for?

Adiwasi.com

National

मध्य प्रदेश में भाजपा-कांग्रेस में आदिवासी नेतृत्व की कमी

भोपाल। मध्य प्रदेश में विधानसभा की 47 सीटों को सीधे प्रभावित करने वाले आदिवासी वर्ग से जुड़ाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस एक समान चुनौती का सामना करते नजर आ रही हैं। दोनों के पास इस वर्ग के नेतृत्व की कमी है। इसकी बड़ी वजह है कि दोनों ने ही प्रमुख आदिवासी नेताओं को अधिक तवज्जो नहीं दी है जिसके चलते कोई सर्वमान्य नेतृत्व पार्टी में उभर ही नहीं सका।

अब आदिवासी वर्ग से प्रभावित खंडवा लोकसभा सीट सहित जोबट विस सीट पर उपचुनाव होने हैं। इसके बाद 2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर भी आदिवासी चेहरे को आगे बढ़ाने की चिंता सता रही है। दरअसल, 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग की नाराजगी का खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा था।

आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में उसका आंकड़ा 32 (एक भाजपा समर्थित निर्दलीय) से घटकर 22 हो गया था और सत्ता के बजाय भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा था। 2023 के विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से कमर कस रहीं भाजपा और कांग्रेस इस कमी से निपटने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन दोनों ही पार्टियों के आदिवासी नेताओं की उपेक्षा का हल अभी निकल नहीं सका है।

कांग्रेस में दलबीर सिंह, दिलीप सिंह भूरिया, शिव भानु सिंह सोलंकी जैसे बड़े नेता आदिवासी रहे लेकिन इन्हें पार्टी में तवज्जो नहीं मिली। उपेक्षा से परेशान होकर ही दिलीप सिंह भूरिया ने भाजपा का दामन थामा था। कांग्रेस में जमुना देवी जरूर सर्वमान्य नेता के तौर पर काम करती रहीं लेकिन उनके बाद इस तरह का मुखर चेहरा पार्टी के पास नहीं रहा। वहीं भाजपा में ही रंजना बघेल, फग्गन सिंह कुलस्ते, ज्ञान सिंह, अंतरसिंह आर्य जैसे नेताओं को महत्व नहीं मिलने से आदिवासी वर्ग का सर्वमान्य नेता पार्टी के पास नहीं रहा। भाजपा में विजय शाह जैसे नेताओं को महत्वपूर्ण पद मिले लेकिन वे आदिवासी वर्ग में भी जमीदारों जैसी व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं।

नाथ कैबिनेट में कमजोर दशा :
आदिवासी चेहरे के मामले में कांग्रेस की कमल नाथ सरकार में भी कमजोर स्थिति थी। उमंग सिंघार और हनी सिंह बघेल को कैबिनेट में लिया गया, लेकिन उनका सियासी कद प्रदेश स्तर का न होने से इस वर्ग को कांग्रेस प्रभावित नहीं कर सकी। कांग्रेस जमुना देवी की कमी को आज भी पूरा नहीं कर सकी है।

कैबिनेट में प्रतिनिधित्व न होने से नुकसान वर्ष 2018 के चुनाव तक की तस्वीर देखें तो तब शिवराज कैबिनेट में आदिवासी वर्ग का प्रतिनिधित्व खास नहीं था। मालवा-निमाड़ अंचल से विधायकों की संख्या के अनुकूल मंत्री नहीं बनाए गए। धार से लेकर झाबुआ तक कोई चेहरा नहीं था। ऐसे में इस क्षेत्र में आदिवासी संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) ने पैठ बना ली। इस संगठन ने चुनाव में कांग्रेस की मदद की जिससे भाजपा को खासा नुकसान उठाना पड़ा था।

भाजपा सर्वस्पर्शी पार्टी है। यहां फग्गन सिंह कुलस्ते ,संपतिया उईके, गजेंद्र पटेल, विजय शाह जैसे दर्जनों नेता हैं। इस वर्ग में और गहरी पैठ बनाने के लिए संगठन काम कर रहा है। – डॉ. दीपक विजयवर्गीय, मुख्य प्रवक्ता, मप्र भाजपा

कांग्रेस ने सदैव आदिवासी हितों की रक्षा की है। उसे सत्ता-संगठन में नेतृत्व की बागडोर सौंपकर इस वर्ग के प्रति अपनी वचनबद्धता भी निभाई है। आगे भी यह क्रम जारी रहेगा। – केके मिश्रा, महासचिव मीडिया, कांग्रेस

Share this Story...
Advertisement

Trending

You May Also Like

Jharkhand

रांची। कोल्हान में कांग्रेस सांसद तथा पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा के भाजपा में शामिल होने के बाद अटकलों का दौर...

Jharkhand

रांची। झारखंड में #INDIA गठबंधन की सरकार ने विश्वास मत जीत लिया है। विधानसभा में हुए शक्ति परीक्षण में सत्ता पक्ष को 47 वोट...

Exclusive

पिछले दशक की शुरुआत में केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार सत्ता में थी। इस सरकार पर कोयला घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, 2G घोटाला...

National

नई दिल्ली। चार विधानसभा चुनावों के नतीजों में भाजपा ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जीत हासिल की है, वहीं कांग्रेस तेलंगाना में सरकार...

error: Content is protected !!