रांची। कोल्हान में कांग्रेस सांसद तथा पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा के भाजपा में शामिल होने के बाद अटकलों का दौर जारी है। कुछ लोग इसे भाजपा का मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं, तो वहीं कुछ इसे कांग्रेस के नीतियों की विफलता से जोड़ कर देख रहे हैं।
पिछले वर्ष जनवरी में, जब चाईबासा में गृह मंत्री अमित शाह का प्रोग्राम हुआ था, तभी से कोड़ा दंपत्ति के भाजपा में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थीं। लेकिन शायद वे पार्टी छोड़ने से पहले सांसद के तौर पर कार्यकाल पूरा होने का इंतजार कर रही थीं।
दो दिन पहले, जब सांसद गीता कोड़ा सरायकेला में मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के साथ एक सरकारी कार्यक्रम के मंच पर दिखीं, तब भी शायद किसी को अंदाजा नहीं होगा कि वे इतनी जल्दी पार्टी बदल लेंगी। आज सुबह उनके भाजपा प्रदेश कार्यालय पहुंचने के बाद, प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी एवं विधायक दल के नेता अमर बाउरी ने उनका स्वागत कर, उन्हें पार्टी में शामिल करवाया।
उसके बाद, दल बदलने वाले बाकी नेताओं की तरह, उन्होंने इसके लिए कांग्रेस की नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा नेतृत्व को धन्यवाद दिया।
इस बारे में जब मुख्यमंत्री चंपई सोरेन से मीडिया ने प्रतिक्रिया लेनी चाहिए तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा – “इस कदम के बाद महागठबंधन कोल्हान में और मजबूत हो गया है। हम विधानसभा के बाद अब लोकसभा चुनावों में भी भाजपा का खाता नहीं खुलने देंगे।”
आखिर कोल्हान के कद्दावर राजनेता चंपई सोरेन के इस आत्मविश्वास के पीछे राज क्या है? दरअसल सिंहभूम लोकसभा की यह सीट आरक्षित है, जिसके तहत छह विधानसभा सीटें आती हैं। ये सभी सीटें आरक्षित हैं और यह पूरा क्षेत्र आदिवासी-बहुल है। साल 2019 के चुनावों में इन सीटों पर निम्नलिखित विधायक जीत कर आये थे :
सरायकेला – चंपई सोरेन (झामुमो)
चाईबासा – दीपक बिरुआ (झामुमो)
मझगांव – निरल पूर्ति (झामुमो)
जगन्नाथपुर – सोनाराम सिंकू (कांग्रेस)
मनोहरपुर – जोबा माझी (झामुमो)
चक्रधरपुर – सुखराम उरांव (झामुमो)
भाजपा का गढ़ माने जाने वाले कोल्हान क्षेत्र से भाजपा के दो मुख्यमंत्री हुए हैं, लेकिन उसके बावजूद साल 2019 के चुनावों में कोल्हान की सभी 14 सीटों पर पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। यहां की 13 सीटें महागठबंधन के खाते में गईं, जबकि जमशेदपुर पूर्वी सीट पर निर्दलीय सरयू राय ने सीटिंग सीएम रघुबर दास को धूल चटा दिया।
राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार प्रदेश में महागठबंधन की सरकार बनवाने के पीछे कोल्हान की इस एकतरफा जीत का बड़ा योगदान था। इस क्षेत्र से सरकार में मुख्यमंत्री चंपई सोरेन, मंत्री बन्ना गुप्ता, मंत्री दीपक बिरुआ एवं पूर्व मंत्री जोबा माझी जैसे कई दिग्गज शामिल हैं।
पिछले लोकसभा चुनावों में गीता कोड़ा सिंहभूम से सांसद बनी थीं, जबकि झामुमो जमशेदपुर सीट हार गई थी। इस बार कांग्रेस की ओर से पूर्व आईपीएस डॉ. अजय कुमार जमशेदपुर सीट से लड़ने की तैयारी में हैं, तो गीता कोड़ा के पार्टी छोड़ने के बाद, अब झामुमो यह सीट उन्हें देकर, बदले में सिंहभूम सीट खुद रख सकता है। आदिवासी- बहुल सिंहभूम सीट पर झामुमो का खासा दबदबा है और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद बने माहौल में, यह सीट निकालना उनके लिए ज्यादा मुश्किल नहीं दिखता।
दूसरी ओर, जमशेदपुर के पूर्व एसपी रहे डॉ. अजय कुमार की छवि उनकी राह शहरी वोटरों के बीच आसान बना सकती है। महागठबंधन को लगता है कि अपने परंपरागत आदिवासी वोट बैंक के साथ- साथ पेंशन, राशन, कपड़े व आवास समेत अन्य योजनाओं के लाभुकों के वोट के दम पर, वह कोल्हान की लड़ाई को एकतरफा बना सकता है। लेकिन इन सब के बीच पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के रसूख को कमतर आंकना बेवकूफी होगी।
कुल मिलाकर, आगामी लोकसभा चुनाव भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के लिए एक अग्निपरीक्षा साबित होने जा रही है। राज्य की 14 में से 12 सीटें रखने वाला एनडीए अपनी स्थिति को बरकरार रखना चाहेगा, जबकि झामुमो के रणनीतिकारों को लगता है कि वे उनसे आधी सीटें छीनने में सक्षम हैं। आज के घटनाक्रम का प्रभाव तो शायद चुनावों के परिणाम के बाद ही पता चलेगा, लेकिन इस उठा-पटक के बाद उन भाजपा कार्यकर्ताओं का रुख भी देखने लायक रहेगा, जिनके ऊपर लगातार बाहर से आयातित नेता थोपे जा रहे हैं।