नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने पिछले पांच सालों में करीब 89,000 हेक्टेयर वन भूमि के सड़क बनाने और अन्य उपयोगों के लिए इस्तेमाल की अनुमति दी है। यह इतना बड़ा इलाका है कि इसमें कई शहर समा जाएंगे।
केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने संसद में बताया कि इसमें सबसे ज्यादा जंगल सड़क (19,424 हेक्टेयर) व खनन (18,847 हेक्टेयर) के लिए काटनके की अनुमति दी गई, जबकि सिंचाई परियोजनाओं (13,344 हेक्टेयर), बिजली वितरण (9,469 हेक्टेयर) व सेना के इस्तेमाल (7,630 हेक्टेयर) लिए भी वन काटे गए अथवा काटे जाएंगे।
केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने सांसद सुशील कुमार मोदी के संसद में प्रश्न के जवाब में राज्यसभा को अवगत कराया कि केंद्र सरकार ने वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के प्रावधानों के तहत विभिन्न विकास कार्यों के लिए वन भूमि के बदलावों की अनुमति दी है।
पिछले 5 साल के दौरान (1 अप्रैल 2018 से 31 मार्च 2023 तक) उनके द्वारा साझा किए गए डेटा से पता चलता है कि केंद्र ने 25 से अधिक प्रकार की परियोजनाओं/ कार्यों के लिए फॉरेस्ट लैंड डायवर्जन के फैसले लिए थे जिनमें रेलवे (4,769 हेक्टेयर), थर्मल पावर प्लांट समेत सौर ऊर्जा कार्य और पेयजल सुविधाएं आदि के प्रोजेक्ट्स प्रमुख रूप से शामिल रहे हैं।
चौबे ने कहा कि वन आवरण की परिभाषा में शामिल सभी भूमि का निश्चित पारिस्थितिक या जैव विविधता मूल्य है। इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 के अनुसार, देश में ‘बहुत घने जंगल’ के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र 87,742 वर्ग किमी है, जबकि ‘मध्यम घने जंगल’ का क्षेत्रफल 2,39,564 वर्ग किमी है, जो 7,38,373 वर्ग किमी कुल ‘दर्ज वन क्षेत्र/ ग्रीन वॉश एरिया’ के भीतर है। देश के कुल ‘रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया’ में ‘अति सघन’ और ‘मध्यम सघन’ वनों का अनुपात 44.33% है।
क्या जंगलों को काटना और आदिवासियों को उजाड़ना ही विकास की नई परिभाषा है?