रांची। आज मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने वनों पर निर्भर आदिवासियों एवं अन्य लोगों को वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत वनाधिकार पट्टा देने के लिए अबुआ बीर दिशोम अभियान का शुभारंभ किया। इसकी शुरुआत पारंपरिक रूप से नगाड़ा बजाकर किया गया।
इसके तहत एक व्यापक अभियान चलाकर आदिवासी और वनों पर निर्भर रहनेवाले लोगों को व्यक्तिगत, सामुदायिक और सामुदायिक वन संसाधन वनाधिकार पट्टा मुहैया कराया जाएगा। इस अभियान से 15 लाख आदिवासी परिवारों को छह से आठ माह में जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि वनवासियों को वनाधिकार पट्टा देने पर कभी ध्यान ही नहीं दिया गया। इसके लिए उन्होंने उपायुक्तों एवं जिला वन अधिकारियों को भी जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने इस अभियान को सफल बनाने के सख्त निर्देश भी दिए। उन्होंने कहा कि मैंने कई बार अपने पदाधिकारियों को कहा है ये राज्य देश के अन्य राज्यों से थोड़ा अलग है। जो काम राज्य गठन के वक्त होना चाहिए था वो आज हो रहा है।
सीएम ने कहा कि आज पर्यावरण पर चर्चा होती है। आपने देश की राजधानी दिल्ली की स्थिति देखी होगी, वहां स्कूल-कॉलेज बंद हो गये हैं। हमारा आदिवासी समाज पेड़ को कभी नुकसान नहीं पहुंचाता है, हम पर्यावरण का संरक्षण करते हैं। हमने राज्य में बुके (गुलदस्ता) की प्रथा खत्म कर दी है और पौधा देने की शुरुआत की है।
इस अभियान को सफल बनाने के लिए ग्राम, अनुमंडल एवं जिला स्तर पर वनाधिकार समिति का गठन/पुनर्गठन किया गया है। यह समिति वन पर निर्भर लोगों और समुदायों को वनाधिकार पट्टा दिये जाने के लिए उनके दावा पर नियमानुसार अनुशंसा करेगी।
इस अवसर पर अभियान के सफल क्रियान्वयन के लिए विशेष मोबाइल एप्लीकेशन एवं वेबसाइट का भी उद्घाटन किया गया, जिससे आदिवासी और वनों पर निर्भर रहने वाले लोगों को व्यक्तिगत, सामुदायिक और सामुदायिक वन संसाधन वनाधिकार पट्टा मुहैया कराया जा सके।
वन अधिकार समिति द्वारा चिन्हित लोगों को सरकार द्वारा वन पट्टा मुहैया कराने हेतु अभियान अबुआ बीर दिशोम अभियान की शुरुआत राज्यस्तरीय प्रशिक्षण सह कार्यशाला से हुई। इसमें सभी जिलों के उपायुक्त और जिला अधिकारी और वन प्रमंडल पदाधिकारी उपस्थित थे।
इस अवसर पर मुख्य सचिव सुखदेव सिंह ने कहा कि यह चिंताजनक है कि अधिनियम लागू होने के 17 साल में महज 60 हजार लोगों को पट्टा दिया गया है। सामुदायिक वनाधिकार पट्टा तो न के बराबर है।