रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने सरगुजा संभाग के हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) को आवंटित तीन आगामी कोयला खदान परियोजनाओं के संबंध में कार्यवाही रोक दी है। इन परियोजनाओं को स्थानीय लोगों और कार्यकर्ताओं के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
स्थानीय लोगों का दावा है कि कोयला खदान से जैव विविधता और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचेगा। पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में खनन न केवल आदिवासियों को विस्थापित करेगा साथ ही क्षेत्र में मानव-हाथी संघर्ष भी बढ़ेगा।
हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान के विरोध में बीते एक दशक से आंदोलन चल रहा है। केंद्र सरकार की तरफ से नई कोयला खदानों को मंजूरी देने के बाद से ही आदिवासियों का आंदोलन उग्र हो गया। राजस्थान में बिजली संकट को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार से बातचीत के बाद 6 अप्रैल 2022 को छत्तीसगढ़ सरकार ने भी कोयला खदानों को मंजूरी दे दी थी। हसदेव के लोग फर्जी तरीके से कोयला खदान के लिए जमीन अधिग्रहण और वन स्वीकृति को लेकर कानूनी लड़ाई भी लड़ रहे हैं। इस बीच हसदेव बचाओ आंदोलन देश के कई राज्यों समेत विदेशों में भी देखा गया।
तीन खदानों के कार्य स्थगित
सरकार के इस फैसले से तीन परियोजनाएं प्रभावित होने वाली हैं। प्रभावित होने वाली तीन परियोजनाएं परसा, परसा पूर्व और कांते बासन (पीईकेबी) है। सरगुजा कलेक्टर संजीव झा ने गुरुवार को मीडिया को बताया कि खनन की “सभी विभागीय या आधिकारिक प्रक्रियाओं” को अनिश्चित काल के लिए रोक दिया गया है। बता दें, परसा में जो खनन परियोजनाएं 2013 से पहले से चल रहे हैं वह अभी जारी रहेंगे।
फैसले से लोग असंतुष्ट
क्षेत्र में कोयला खदानों और वनों की कटाई का विरोध कर रहे कार्यकर्ता सरकार के इस फैसले से असंतुष्ट हैं। उनका मानना है कि यह लोगों का ध्यान भटकाने के लिए रणनीति रची जा रही है और प्रोजेक्ट को होल्ड पर न रखकर सरकार को परियोजना को पूरी तरह से रद्द कर देना चाहिए। सरकार की इस गतिविधि के ऊपर सरकारी अधिकारियों ने भी हैरानी जताई है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा- “या तो आदेश पास किया जाता है या रद्द कर दिया जाता है, सरकारी प्रणाली में चीजें अनिश्चित काल के लिए रोकी नहीं जा सकती।”
बता दें, कि ये पूरा विवाद छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा परसा खनन परियोजना के लिए 841.538 हेक्टेयर वन भूमि की स्वीकृति दिए जाने के बाद शुरू हुआ था। दरअसल केंद्र सरकार भारत में कोयला खनन का विस्तार करना चाहती है और अधिकांश नव खनन क्षेत्र आदिवासी भूमि पर हैं, जिनमें से एक हसदेव भी है। इस परियोजना का विरोध कर रहे पर्यावरण और सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि क्षेत्र में नियोजित खनन परियोजनाओं के लिए 841 हेक्टेयर जंगल में फैले 200,000 से अधिक पेड़ों को काटना होगा। यह परियोजनाएं अडानी समूह द्वारा संचालित और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम के स्वामित्व में हैं।
सरगुजा के जिलाधिकारी संजीव झा ने कहा कि स्थानीय जनप्रतिनिधि की सहमति के बिना प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा। साथ ही उन्होंने बताया कि तीनों खदानें आरआरवीयूएनएल को आवंटित की गई हैं तथा अडानी समूह एमडीओ (माइन डेवलपर और आपरेटर) के रूप में इससे जुड़ा है। उन्होंने बताया कि क्षेत्र के जिन खदानों में काम चल रहा है वे खदानें काम करती रहेंगी।