नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की घटनाओं की जांच के लिए सोमवार को रिटायर्ड महिला जजों की एक समिति के गठन पर विचार किया। उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मणिपुर की दो कुकी-जोमी महिलाओं की याचिका पर सुनवाई की।
ये दो महिलाएं एक भीड़ की हैवानियत की शिकार होती वीडियो में देखी गई थीं। वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद देश में हंगामा मच गया। इसी मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की मांग को लेकर विपक्ष संसद की कार्यवाही को लगातार बाधित कर रहा है।
इधर, दोनों पीड़ित महिलाओं ने घटना की विशेष जांच दल (SIT) से जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इनकी याचिक पर सुनवाई करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, ‘हमें वस्तुनिष्ठ सहायता की आवश्यकता है। हम एक काम कर सकते हैं कि महिला जजों और इस क्षेत्र विशेषज्ञों की एक समिति हो या फिर महिला और पुरुष जजों की एक समिति हो। अगर अब तक उठाए गए कदमों से हम संतुष्ट नहीं हैं तो हम देखेंगे कि इसमें किस हद तक हस्तक्षेप कर सकते हैं।’
सुप्रीम कोर्ट ने मांगे कार्रवाइयों के एक-एक डीटेल
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मामले में आज कोई फैसला नहीं दिया। इसके बजाय कोर्ट ने मणिपुर में अब तक की गई प्रशासनिक कार्रवाइयों का विवरण मांगा। अब सर्वोच्च अदालत को घटना से संबंधित सभी 6,000 एफआईआर की जानकारी भी सौंपनी होगी। अदालत ने कहा, ‘हमें 6,000 प्राथमिकी को अलग-अलग करके परखने की जरूरत है कि कितनी जीरो एफआईआर हुई हैं, कितनी गिरफ्तारियां हुई हैं, कितने आरोपी न्यायिक हिरासत में हैं, 156(3) के तहत कितने बयान दर्ज किए गए हैं और कानूनी सहायता कैसे दी जा रही है। पीठ ने कहा, ‘हम कल राज्य से जवाब ले सकते हैं और कल इस पर विचार कर सकते हैं।
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सारे डिटेल देने के लिए ज्यादा वक्त देने की मांग की लेकिन अदालत ने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, ‘हम और समय नहीं दे सकते। देर हुई तो सभी सबूत गायब हो जाएंगे। इम्फाल में कार को धो देने की घटना को ही ले लें। मैंने भी इसके बारे में पढ़ा। पीठ ने पूछा कि कौन बयान देगा कि वहां क्या हुआ?’ इस पर सॉलिसटिर ने कहा कि इतना कम समय में इतने कगाजात जुटाना संभव नहीं है। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर का रिकॉर्ड तो ऑनलाइन रखा जाता है।
हैवानियत की शिकार दोनों महिलाएं पहुंचीं सर्वोच्च अदालत
उधर, मणिपुर के वायरल वीडियो में दिखीं दोनों महिलाओं ने अपने लिए सुरक्षा की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय से अपील की कि वो स्थानीय मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 164 के तहत उनका बयान दर्ज करने का निर्देश दे। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर और केंद्र की सरकारों से भी राय मांगी कि अगर एसआईटी गठित की जाती है तो उसकी संरचना कैसी होगी? पीठ ने कहा, ‘आखिरकार अगर हम एसआईटी के अनुरोध को स्वीकार करते हैं, तो आप अपनी तरफ से भई कुछ नाम सुझाएं और याचिकाकर्ताओं की तरफ से दिए नामों पर भी राय दें। हमें इन सबका बैकग्राउंड देखना होगा। हमें बताएं कि क्या नाम अच्छे हैं। पीठ ने कहा कि अब मंगलवार दोपहर 2 बजे मामले की अगली सुनवाई होगी। मालूम हो कि सोमवार की सुनवाई में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ काफी सख्त दिखे।
उन्होंने क्या-क्या कहा, आइए जानते हैं:
1. दो महिलाओं का ही नहीं, मणिपुर में ऐसे कई वारदात हुए
इन तीन महिलाओं का वीडियो यौन उत्पीड़न का एकमात्र उदाहरण नहीं है, बल्कि ऐसी कई घटनाएं हुई हैं और यह उनसे अलग घटना नहीं है। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि इन 3 महिलाओं के साथ न्याय हो, लेकिन हमें मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के व्यापक मुद्दे को भी देखना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना है कि जिन मामलों में शिकायतें आदि दर्ज की गई हैं, उन सभी मामलों में कार्रवाई की गई है। हमें बताएं कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर कितनी एफआईआर दर्ज की गई हैं?
2. दोनों पक्षों को समझ रहे हैं, लेंगे उचित ऐक्शन
हम अलग-अलग पक्षों को अच्छी तरह समझ रहे हैं। हम दोनों पक्षों को संक्षेप में सुनेंगे और फिर हम सही कार्रवाई के बारे में निर्णय लेंगे। हमारे पास अब कोई साक्ष्य रिकॉर्ड नहीं है। आइए हम याचिकाकर्ताओं को सुनें और फिर एजी और एसजी मेहता के विचार भी सुनेंगे।
3. मणिपुर की बंगाल या किसी अन्य प्रदेश से तुलना गलत
हम सांप्रदायिक और जातीय हिंसा में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की अभूतपूर्व घटनाओं का जायजा ले रहे हैं। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि महिलाओं के खिलाफ अपराध तो बंगाल में भी हो रहे हैं क्योंकि मणिपुर का मामला अलग है। मुझे बताएं कि मणिपुर मामले में आपकी क्या सलाह है? मणिपुर में जो हुआ उसे हम यह कहकर सही नहीं ठहरा सकते कि ऐसे मामले और प्रदेशों में भी हुए हैं।
4. मुकदमों का डीटेल दें, अब और वक्त नहीं दे सकते
आपने कहा था कि मणिपुर में 6,000 एफआईआर दर्ज की गई, इसका डीटेल क्या है? महिलाओं के खिलाफ कितने अपराध हुए हैं? फिर सार्वजनिक संपत्ति, धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाने के अपराध भी हुए, उनकी क्या स्थिति है? हमें बताएं कि ऐसी कितनी जीरो एफआईआर दर्ज हैं, क्या कोई धारा 156(3) में दर्ज अपराध हैं, हम किस तरह की कानूनी सहायता प्रदान कर रहे हैं और यह भी बताएं कि क्या वीडियो में दिखी दो महिलाओं के खिलाफ ही ऐसी विभत्स घटना हुई है या फिर ऐसी वारदातें और भी हुई हैं और ऐसे मामलों में कितनी एफआईआर हुई हैं?
5. मीडिया में सारी बातें हैं, लेकिन सरकार के पास ही नहीं?
सभी तथ्य मीडिया में हैं। अजीब बात है कि मणिपुर सरकार के पास ही तथ्य नहीं हैं। लेकिन अगर तथ्य आंशिक रूप से सच हैं.. हम मिलीभगत की बात नहीं कर रहे हैं.. लेकिन अगर उन्हें पुलिस द्वारा भीड़ को सौंप दिया गया… यह निर्भया जैसा नहीं है… वह भी भयानक था… लेकिन यहां यह एक अलग स्थिति नहीं है… यहां सांप्रदायिक और जातीय हिंसा प्रभावित क्षेत्र में ऐसी घटनाओं का एक पैटर्न है।
6. मणिपुर को देना होगा हीलिंग टच
मणिपुर हिंसा के पीड़ितों पर संवेदना का स्पर्श (Healing Touch) देने की बहुत जरूरत है। हिंसा बेरोकटोक हो रही है और अदालत की तरफ से नियुक्त टीम ने एक संदेश भेजा जिसका सर्वोच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया है। जजों और ऑफिसरों को नियुक्त किया जा सकता है जो जमीनी हालात का निष्पक्ष नजारा पेश कर सकें।
7. पीड़ितों को न्याय मांगना ना पड़े, हम उसके दरवाजे तक पहुंचेंगे
हमने यह सुनिश्चित किया है कि इसे केवल एसआईटी या सीबीआई को सौंपना पर्याप्त नहीं होगा। हमें निर्देश जारी करने होंगे कि धारा 161 का बयान कैसे दर्ज किया जाए। एक कैंप में रह रही 19 वर्षीय जिसने पिता और भाई आदि को खो दिया है, वह अपना बयान दर्ज करने के लिए कहां जाएगी? न्याय को उसके दरवाजे तक पहुंचना होगा।