छतरपुर। बक्सवाहा जंगल की चट्टानों में लगभग 25 हजार वर्ष पुराने शैल चित्रों को बचाने के लिए दायर की गई रिट याचिका में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट सोमवार (27 सितंबर) को सुनवाई करेगा। इसके पूर्व जुलाई माह में हाईकोर्ट ने सुनवाई की थी।
समाजसेवी डा. पीजी नाजपांडे ने अपने अधिवक्ता सुरेंद्र वर्मा के माध्यम से मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (जबलपुर) में जनहित याचिका दायर करके बक्सवाहा जंगल की रॉक पेंटिंग को पाषण युग और मानव इतिहास पूर्व काल की बताते हुए इन्हें संरक्षित किए जाने के लिए कई दलीलें दी थीं। जिस पर हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और मध्य प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था। एएसआई की टीम ने 10 से 12 जुलाई तक बक्सवाहा जंगल के शैल चित्रों का सर्वेक्षण करने के बाद अपनी रिपोर्ट अधिवक्ता के माध्यम से हाईकोर्ट को जुलाई माह में सौंपी थी।
इसके बाद, हाईकोर्ट ने 24 जुलाई को अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद करने का आदेश दिया था। याचिकाकर्ता डा. नाजपांडे ने बताया कि हाईकोर्ट में इसकी सुनवाई सोमवार 27 सितंबर को होगी।
बक्सवाहा जंगल को काटने पर एनजीटी ने लगाई थी रोक
इसी साल 1 जुलाई को, पर्यावरण प्रेमियों के बड़े आंदोलन के बाद एनजीटी ने बक्सवाहा के जंगल काटने पर रोक लगा दी थी। पेड़ों को कटने से बचाने के लिए पर्यावरण प्रेमियों द्वारा पांच जून को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में याचिका दायर की गई थी।
ज्ञात हो कि बक्सवाहा के 382 हेक्टेयर के वन क्षेत्र में एस्सेल माइनिंग इंडस्ट्रीज लिमिटेड के नेतृत्व में बंदर हीरा खदान प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी दी जानी है जो आदित्य बिड़ला समूह की एक इकाई है। माना जा रहा है कि अगर यह प्रोजेक्ट सफल रहा तो यह एशिया की सबसे बड़ी हीरा खदान बन सकती है। पर्यावरण प्रेमियों के अनुसार, इस प्रक्रिया में करीब 2.15 लाख पेड़ काटे जायेंगे, इसलिए शुरू से ही इसका विरोध हो रहा है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस परियोजना के लिए प्रति वर्ष लगभग 5.3 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता होगी। छतरपुर क्षेत्र में पहले से मौजूद पानी की कमी को ध्यान में रखते हुए परियोजना के लिए पानी की अत्यधिक उच्च मांग अंतत: पारिस्थितिक असंतुलन का कारण बनेगी और उस क्षेत्र के वनस्पतियों व जीवों के लिए खतरा बन सकती है।