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हजारों परिवारों को बर्बाद कर रही है फर्जी लॉटरी !

सरायकेला-खरसावां जिले (झारखंड) के चांडिल का रहने वाला महेश टुडू (नाम बदला गया है) मजदूरी करता है और जो कुछ भी वह कमाता है, शाम को उसे लॉटरी में झोंक देता है। कुछ महीने पहले उसे एक दोस्त ने लॉटरी के जरिए अमीर बनने का रास्ता दिखाया था। उसके बाद, उसी मृगतृष्णा के पीछे भागते भागते, उसका परिवार बर्बाद हो चुका है।

यह कहानी उस क्षेत्र के हजारों परिवारों की है, जो करोड़पति बनने की उम्मीद में लॉटरी का टिकट खरीदते हैं, लेकिन उन्हें यह भी नहीं पता कि वह लॉटरी पूर्णतः फर्जी है। भले ही उस पर नागालैंड सरकार का जिक्र हो, लेकिन इस फर्जी लॉटरी के टिकट स्थानीय स्तर पर छपते हैं और असली डियर लॉटरी के ड्रॉ के आखिरी अंकों को मिला कर, कुछ लोगों को 2-4 सौ या कुछेक हजार का इनाम स्थानीय स्तर पर ही दे दिया जाता है।

इस लॉटरी की लत की वजह से हजारों लोग ना तो अपने परिवारों का पालन-पोषण कर पा रहे हैं, ना ही बच्चों की स्कूल फीस दे पा रहे हैं, बस “तुरंत अमीर होने के एक झूठे छलावे” के पीछे रोज हजारों रुपये गँवा रहे हैं। इसी क्षेत्र में हमारी टीम की मुलाकात एक ऐसे शख्स से भी हुई, जिसने पिछले डेढ़-दो सालों में 15-16 लाख रुपये इसमें लुटा दिए।

फिर से शुरू हुआ लॉटरी का गोरखधंधा
पिछले साल जनवरी में आदिवासी डॉट कॉम ने सरायकेला-खरसावां एवं आसपास के जिलों में चल रही फर्जी लॉटरी का मामला उठाया था, जिसके बाद प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई करते हुए लॉटरी का कारोबार बंद करवा दिया था। कुछ समय तो सब ठीक-ठाक रहा, लेकिन उसके बाद, फिर यह गोरखधंधा शुरू हो गया।

करोड़ों का है यह ‘खेल’
एक अरसे से झारखंड में लॉटरी पर प्रतिबंध है, लेकिन फिर भी चोरी-छिपे सीमावर्ती राज्य बंगाल में बिकने वाली थोड़ी-बहुत लॉटरी यहाँ भी आ ही जाती थी। लेकिन अभी जिस स्तर पर यह ‘खेल’ चल रहा है, वह कल्पना से परे है। चांडिल के एक व्यवसायी बताते हैं – “हर दिन, सिर्फ इस क्षेत्र में 10 लाख रुपयों से ज्यादा के फर्जी लॉटरी टिकट बेचे जाते हैं।”

एक अनुमान के मुताबिक ऐसा ही आंकड़ा चांडिल, चाईबासा (प. सिंहभूम) तथा अन्य क्षेत्रों का भी है, और कुल मिलाकर, हर दिन, राज्य भर में कई करोड़ रुपयों का यह अवैध धंधा होता है।

कैसे चलता है यह गोरखधंधा?
प्राप्त जानकारी के अनुसार पहले यहाँ बंगाल में बिकने वाले “DEAR” लॉटरी के टिकट अवैध तौर पर आते थे। उन लॉटरी के टिकटों की कीमत 6 रुपये थी, और उसमें एजेंटों को मात्र 5-7% कमीशन मिलता था। यह लॉटरी नागालैंड सरकार द्वारा चलाई जाती है जिसमें विजेता को अधिकतम 1 करोड़ रुपये तक का इनाम मिलता है।

कुछ वर्षों पहले, एक राष्ट्रीय राजनैतिक दल से जुड़े कुछ नेताओं ने उसी नाम (DEAR) से यहाँ नकली लॉटरी टिकट छपवाना शुरू कर दिया और उसे 10 रुपये प्रति टिकट की दर से बेचने लगे। एक ही टिकट में अब 5, 10 और 20 नंबरों की सीरीज के विकल्प दिये जाने लगे, जिस से एक टिकट की कीमत 50, 100 और 200 रुपये हो गई है।

इन फर्जी लॉटरी के टिकटों को बंगाल से लाने की जरूरत नहीं पड़ती और फर्जी लॉटरी के संचालकों द्वारा एजेंटों को इस पर 10% कमीशन दिया जाता है। इसमें इनाम की रकम अधिकतम 1 लाख तक होती है। दिन में तीन बार (दोपहर 1 बजे, शाम 6 बजे, रात 8 बजे) होने वाली इस लॉटरी के नंबर असली DEAR लॉटरी टिकटों के नंबर जैसे ही होते हैं और असली DEAR लॉटरी के परिणामों से मिलने वाले नंबर के टिकटों पर ही इनाम दिए जाते हैं।

इस प्रकार संचालकों को स्वयं परिणाम घोषित करने की चिंता भी नहीं होती और असली परिणामों को दिखा कर वे भोले-भाले ग्रामीणों को यह समझा देते हैं कि उनकी लॉटरी असली है। चूंकि असली DEAR लॉटरी हर दिन बंगाल, नागालैंड तथा कई अन्य राज्यों में लाखों टिकट बेचती है और यहाँ उसकी तुलना में काफी कम टिकट छपते हैं तो ज्यादातर समय विजेता नम्बरों वाले टिकट किसी के पास नहीं होते, इसलिए इनाम देना भी नहीं पड़ता।

जब कभी-कभार, इत्तेफाक से नंबर मिलने की वजह से इनाम देने की नौबत भी आती है तो वह रकम काफी छोटी होती है, क्योंकि इनकी टिकटों पर 1 करोड़ नहीं बल्कि 1 लाख की अधिकतम राशि लिखी होती है, तो जीती गई अन्य रकम भी उसी अनुपात में कम कर दी जाती है।

जब कभी भी, किसी को 5,10 हजार या 50 हजार की रकम इनाम के तौर पर मिलती है, तो फिर उसे एजेंटों द्वारा खूब प्रचारित किया जाता है। वैसे भी हर दिन लाखों-करोड़ों रुपये कमाने वाले इन संचालकों के लिए कुछ हजार रुपयों का इनाम एक तरह से “मार्केटिंग बजट” होता है। एक छोटे से इनाम के बाद बाद, वह विजेता व्यक्ति, उसके पड़ोसी तथा दोस्त, दुगुने उत्साह के साथ तैयार हो जाते हैं, लालच के इस दलदल में हजारों-लाखों रुपये डूबाने के लिए।

सवाल यह है कि जब झारखंड में हर प्रकार की लॉटरी के खरीद-बिक्री पर रोक है, तो फिर हर छोटे-बड़े बाजारों के कई दुकानों में बिक रही इस फर्जी लॉटरी बंद करने का कोई गंभीर प्रयास पुलिस द्वारा क्यों नहीं होता? पुलिस प्रशासन की नाक के नीचे चल रहे इस गोरखधंधे पर रोक कौन लगाएगा?

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