सरायकेला-खरसावां जिले के चौका क्षेत्र का निवासी विकास (नाम बदला गया है) पहले ऑटो चलाता था। किसी दोस्त की देखादेखी लॉटरी खेलने की लत लगी, फिर सारे पैसे उसमें जाने लगे, नतीजा यह हुआ कि वो समय पर ऑटो की ईएमआई नहीं भर पाया, और बैंक उसका ऑटो उठा कर ले गई। अब वो दिहाड़ी मजदूरी करता है।
उसी एरिया में रहने वाले मुकेश की जूते-चप्पलों को दुकान है, हर दिन की बिक्री से लॉटरी टिकट खरीदने की वजह से अब दुकान बंद होने की कगार पर है, क्योंकि लगभग सारे जूते-चप्पल बिक चुके हैं और नया सामान खरीदने के लिए पूंजी बची ही नहीं है। ठीक ऐसी ही कहानी डोसा बेचने वाले रमेश की है जो पहले रोज 6-7 सौ कमा कर घर ले जाता था, लेकिन अब सारे पैसे लॉटरी में उड़ जाते हैं तो कई बार परिवार को खाने के लाले पड़ जाते हैं।
ऐसे हजारों अन्य लोग हैं जिन्हें लॉटरी की लत ने बर्बाद कर दिया है। वे ना अपने परिवारों का पालन-पोषण कर पा रहे हैं, ना ही बच्चों की स्कूल फीस दे पा रहे हैं, बस “तुरंत अमीर होने के एक झूठे छलावे” के पीछे रोज हजारों रुपये गँवा रहे हैं। इस रिपोर्ट की कवरेज के दौरान हमारी टीम की मुलाकात एक ऐसे शख्स से भी हुई, जिसने पिछले डेढ़-दो सालों में 15-16 लाख रुपये इसमें लुटा दिए।
करोड़ों का है यह ‘खेल’
एक अरसे से झारखंड में लॉटरी पर प्रतिबंध है, लेकिन फिर भी चोरी-छिपे सीमावर्ती राज्य बंगाल में बिकने वाली थोड़ी-बहुत लॉटरी यहाँ भी आ ही जाती थी। लेकिन अभी जिस स्तर पर यह ‘खेल’ चल रहा है, वह कल्पना से परे है। चौका के व्यवसायी गुरुचरण साव बताते हैं – “हर दिन, सिर्फ इस क्षेत्र में 10 लाख रुपयों से ज्यादा के फर्जी लॉटरी टिकट बेचे जाते हैं।”
एक अनुमान के मुताबिक ऐसा ही आंकड़ा चांडिल, चाईबासा (प. सिंहभूम) तथा अन्य क्षेत्रों का भी है, और कुल मिलाकर, हर दिन, राज्य भर में कई करोड़ रुपयों का यह अवैध धंधा होता है।
कैसे चलता है यह गोरखधंधा?
प्राप्त जानकारी के अनुसार पहले यहाँ बंगाल में बिकने वाले “DEAR” लॉटरी के टिकट अवैध तौर पर आते थे। उन लॉटरी के टिकटों की कीमत 6 रुपये थी, और उसमें एजेंटों को मात्र 5-7% कमीशन मिलता था। यह लॉटरी नागालैंड सरकार द्वारा चलाई जाती है जिसमें विजेता को अधिकतम 1 करोड़ रुपये तक का इनाम मिलता है।
कुछ वर्षों पहले, एक राष्ट्रीय राजनैतिक दल से जुड़े कुछ नेताओं ने उसी नाम (DEAR) से यहाँ नकली लॉटरी टिकट छपवाना शुरू कर दिया और उसे 10 रुपये प्रति टिकट की दर से बेचने लगे। एक ही टिकट में अब 5, 10 और 20 नंबरों की सीरीज के विकल्प दिये जाने लगे, जिस से एक टिकट की कीमत 50, 100 और 200 रुपये हो गई है।
इन फर्जी लॉटरी के टिकटों को बंगाल से लाने की जरूरत नहीं पड़ती और फर्जी लॉटरी के संचालकों द्वारा एजेंटों को इस पर 10% कमीशन दिया जाता है। इसमें इनाम की रकम अधिकतम 1 लाख तक होती है। दिन में तीन बार (दोपहर 1 बजे, शाम 6 बजे, रात 8 बजे) होने वाली इस लॉटरी के नंबर असली DEAR लॉटरी टिकटों के नंबर जैसे ही होते हैं और असली DEAR लॉटरी के परिणामों से मिलने वाले नंबर के टिकटों पर ही इनाम दिए जाते हैं।
इस प्रकार संचालकों को स्वयं परिणाम घोषित करने की चिंता भी नहीं होती और असली परिणामों को दिखा कर वे भोले-भाले ग्रामीणों को यह समझा देते हैं कि उनकी लॉटरी असली है। चूंकि असली DEAR लॉटरी हर दिन बंगाल, नागालैंड तथा कई अन्य राज्यों में लाखों टिकट बेचती है और यहाँ उसकी तुलना में काफी कम टिकट छपते हैं तो ज्यादातर समय विजेता नम्बरों वाले टिकट किसी के पास नहीं होते, इसलिए इनाम देना भी नहीं पड़ता।
जब कभी-कभार, इत्तेफाक से नंबर मिलने की वजह से इनाम देने की नौबत भी आती है तो वह रकम काफी छोटी होती है, क्योंकि इनकी टिकटों पर 1 करोड़ नहीं बल्कि 1 लाख की अधिकतम राशि लिखी होती है, तो जीती गई अन्य रकम भी उसी अनुपात में कम कर दी जाती है।
जब कभी भी, किसी को 5,10 हजार या 50 हजार की रकम इनाम के तौर पर मिलती है, तो फिर उसे एजेंटों द्वारा खूब प्रचारित किया जाता है। वैसे भी हर दिन लाखों-करोड़ों रुपये कमाने वाले इन संचालकों के लिए कुछ हजार रुपयों का इनाम एक तरह से “मार्केटिंग बजट” होता है। एक छोटे से इनाम के बाद बाद, वह विजेता व्यक्ति, उसके पड़ोसी तथा दोस्त, दुगुने उत्साह के साथ तैयार हो जाते हैं, लालच के इस दलदल में हजारों-लाखों रुपये डूबाने के लिए।
इस क्षेत्र के कुछ युवा बीच-बीच में सोशल मीडिया पर यह मुद्दा उठाते रहते हैं। जब कभी भी विरोध बढ़ता है या किसी मीडिया में यह मुद्दा उछलता है तब 2-4 दिनों तक, उस क्षेत्र में यह बंद हो जाता है।
सवाल यह है कि जब झारखंड में हर प्रकार की लॉटरी के खरीद-बिक्री पर रोक है, तो फिर हर छोटे-बड़े बाजारों के कई दुकानों में बिक रही इस फर्जी लॉटरी बंद करने का कोई गंभीर प्रयास पुलिस द्वारा क्यों नहीं होता? पुलिस प्रशासन की नाक के नीचे चल रहे इस गोरखधंधे पर रोक कौन लगाएगा?