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एक अक्षर के फेर में एमपी के हजारों आदिवासियों को दलित बताया जा रहा

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मध्य प्रदेश के धार जिले के ग्राम बड़ा कठोड़िया के दरबार सिंह अनुसूचित जनजाति (ST) हैं, जबकि उनके छोटे भाई हेमेंद्र को एससी (SC) होने का प्रमाण पत्र दिया गया है। इसी जिले के ग्राम पडुनिया के शादाराम का बड़े बेटे के राहुल के पास ST का प्रमाणपत्र है, जबकि छोटे बेटे लखन को प्रशासन ने एससी (SC) माना है। भेरूलाल का बेटा तूफान सिंह कागजों में आदिवासी है, जबकि उनका बड़ा भाई अनुसूचित जाति यानी (SC) में दर्ज है।

यह समस्या सिर्फ हेमेंद्र सिंह, तूफान सिंह या लखन की नहीं है, बल्कि हजारों आदिवासियों की है। मध्यप्रदेश में सरकार के लिए आदिवासी वोटर्स (Tribal Voters) की निर्णायक भूमिका देख सत्ता-संगठन के अलावा विपक्षी दल कांग्रेस (Congress) उन्हें रिझाने में तो जुटी है, लेकिन धार जिले के 30 गांवों की तरफ शायद हुक्मरानों की नजर नहीं जा रही।

30 गांवों के आदिवासियों की पहचान पर संकट
इस जिले के 30 गांवों के ‘मोगिया’ आदिवासी परिवारों का एसटी प्रमाण पत्र (ST Certificate) ही नहीं बन पा रहा। विडंबना यह कि ‘मोघिया’ यहां दलित (SC) और ‘मोगिया’ ST की श्रेणी में हैं। हिंदी वर्णमाला के अक्षर ‘ग’ और ‘घ’ के फेर में उनकी पहचान ही बदल गई। इसके चलते 2009 से उनके प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहे। कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जहां प्रशासन बड़े बेटे को अनुसूचित जनजाति (ST)मानता है, जबकि छोटे को दलित (SC) बता रहा है।

लालफीताशाही में उलझकर रह गया मामला
इन गांवों में प्रशासन ने बड़ी संख्या में मोगिया (ST) आदिवासियों के परिजनों को मोघिया (SC) मानकर प्रमाण पत्र जारी कर दिए। इस मुद्दे को आदिवासी परिवारों ने कई बार सरकार के सामने उठाया, लेकिन मामला लालफीताशाही में ही उलझकर रह गया। मप्र मानव अधिकार आयोग भी इस संबंध में निर्देश दे चुका है, लेकिन निराकरण नहीं हो पाया। धार जिले में ऐस 12-14 हजार आदिवासी एसटी का प्रमाण पत्र पाने के लिए कई वर्षों से परेशान हैं। आदिवासी परिवारों के नए प्रमाण पत्र भी अजजा वर्ग के नहीं बन पा रहे। इस कारण उन्हें वनाधिकार पट्टे, नौकरी में आरक्षण सहित अन्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।

2009 के बाद एसटी सर्टिफिकेट पर लगी रोक
बताया जाता है कि 2009 तक बदनावर क्षेत्र में कलेक्टर द्वारा एसटी के प्रमाण पत्र बनाए गए। इसके बाद रोक लगा दी गई। तत्कालीन एसडीओ ओपी श्रीवास्तव ने एसटी के प्रमाण पत्र पर रोक लगा दी और एससी के सर्टिफिकेट जारी कर दिए। उसके बाद मामला नहीं सुलझ पा रहा। कलेक्टर के आदेश पर प्रथम अपील करने पर ही समाधान का रास्ता सुझाया गया है। कलेक्टर प्रियंक मिश्रा ने इस मुद्दे पर कहा मामले की जानकारी लेकर ही कुछ कह पाऊंगा।

कारनामे के पीछे जमीनें खरीदने का गोरखधंधा
जानकारों का कहना है कि आदिवासियों की जमीन खरीदने के लिए यह गोरखधंधा शुरू किया गया था। इसमें क्षेत्र के बिल्डर्स की सांठगांठ की भी शामिल है। आदिवासियों को लालच देकर उन्हें एससी में घोषित कराकर जमीनें हथिया ली गईं क्योंकि जब तक जमीन का मालिक आदिवासी है गैर आदिवासी जमीन नहीं खरीद सकता। (साभार: पीपुल्स अपडेट)

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