Connect with us

Hi, what are you looking for?

Adiwasi.com

National

दशहरा के समय बस्तर में 3 दिन तक चलता है ओपन बार

बस्तर। बस्तर में दशहरा का पर्व अपनी अनूठी परंपरा और अनोखी रस्मो के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, यहाँ दशहरा के पर्व के दौरान आदिवासियों की संस्कृति झलकती है। पूरे बस्तर संभाग के सातों जिलों के आदिवासी ग्रामीण इस पर्व में शामिल होने के लिए जगदलपुर शहर पहुंचते हैं। इस पर्व में निभाई जाने वाली 12 से अधिक रस्मों की अपनी अलग ही विशेषता होती है और वहीं इन आदिवासियों के लिए दशहरा पर्व के दौरान केवल 3 दिनों के लिए शहर के सरकारी कार्यालय में ओपन बार की सुविधा होती है। यहां पर देसी मंद, महुआ और लांदा (पेय पदार्थ) और अलग-अलग वेज, नॉनवेज बस्तर के व्यंजन होते हैं, जिसे आम लोग बड़े चाव से खाते हैं।

तीन दिनों तक रहता है ओपन बार
दरअसल बस्तर दशहरा पर्व में देसी मंद का यह ओपन बार 3 दिनों तक चलता रहता है। इसमें आदिवासी देसी मंद के साथ चखना की बिक्री करते हैं। इतना ही नहीं इन देसी मंद के ठेकों पर प्रशासन की भी कोई रोक टोक नहीं होती। बकायदा बस्तर संभाग से पहुंचे आदिवासी फॉरेस्ट ऑफिस के कैंपस में “ओपन बार” लगाते हैं और 3 दिनों तक ओपन बार में देसी मंद पीने और तरह-तरह के व्यंजन खाने की पूरी आजादी होती है। केवल रात में ही नहीं बल्कि दिन में भी देसी मंद के बार पूरी तरह से खुले रहते हैं। पूरे 3 दिनों तक सैकड़ों ग्रामीणों के साथ शहरवासी भी इस देसी मंद का जमकर लुत्फ उठाते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि यह परंपरा हिंदुस्तान के केवल बस्तर में ही देखने को मिलती है। तकरीबन 250 सालों से यह परंपरा बस्तर में चली आ रही है।

प्रशासन की तरफ से रहती है पूरी छूट
इसके अलावा ग्रामीणों का कहना है कि इस बस्तर दशहरा पर्व में 3 दिनों तक उनके आय का भी यह मुख्य जरिया होता है। बकायदा सरकारी दफ्तर के कैम्पस में ही ग्रामीण महिलाएं देसी मंद, लांदा, महुआ बनाती हैं। इसे फिर वेज और नॉनवेज चखना के साथ परोसती हैं, जिसे ग्रामीण और शहरवासी बड़े चाव से खाते हैं। बकायदा आदिवासी ग्रामीण इस देसी मंद को तेंदु पत्ते के दोने में लेते हैं, जिससे इसका स्वाद और भी बढ़ जाता है।

साल भर में केवल 3 दिन के लिए लगने वाले इस ओपन बार मे देसी मंद, महुआ, लांदा की बिक्री होती है और 3 दिनों में उनकी अच्छी कमाई भी होती है। खास बात यह है कि प्रशासन की तरफ से उन्हें पूरी छूट होती है और प्रशासन के अधिकारी इस पर कोई हस्तक्षेप नहीं करते। पूरे 3 दिन के लिए 24 घंटे यह ओपन बार आम लोगों के लिए खुला रहता है।

Share this Story...

You May Also Like

Culture

रांची। भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) रांची द्वारा टाटा स्टील फाउंडेशन के सहयोग से, आगामी 26-27 अगस्त को दो दिवसीय आदिवासी सम्मेलन एवं आदिवासी फिल्म...

Culture

नॉर्वे विश्वविद्यालय के मित्र सह ‘द पोलिटिकल लाइफ ऑफ़ मेमोरी’ के लेखक राहुल रंजन ने अपनी पुस्तक के भूमिका में लिखा है कि आदिवासियों...

National

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों में से एक दंतेवाड़ा के 47 आदिवासी छात्रों ने नीट और जेईई में कामयाबी हासिल की है। दंतेवाड़ा के...

Jharkhand

रांची। संत जेवियर डोरंडा के पूर्व छात्र, प्रमुख शिक्षाविद, लेखक, युवा पीढ़ी के मार्गदर्शक एवं डॉ श्याम प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के मानवशास्त्र विभाग के...

error: Content is protected !!