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झारखंड की राजनीति में बदलाव की आहट

झारखंड सरकार के लिए पिछला महीना काफी विवादों में गुजरा। इसकी शुरुआत स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता द्वारा भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास के साथ सोशल मीडिया पर एक फोटो शेयर कर के हुई। उसके बाद शहर भर में उनके “जय श्री राम” वाले होर्डिंग्स की चर्चा के बीच, कुछेक कैबिनेट बैठकों में उनकी अनुपस्थिति चर्चा का विषय बनी।

तत्पश्चात विधायक सरयू राय ने बन्ना गुप्ता और उनके विभाग पर कई आरोप लगा दिए। आरोप-प्रत्यारोप के बीच सरयू राय कुछ दस्तावेज सबूत के तौर पर लेकर आए, तो नाराज बन्ना गुप्ता ने उन पर स्वयं तो मुकदमा तो दायर किया ही, विभाग से भी केस करवा दिया। इन सब घटनाओं के बीच सरकार तथा बाकी मंत्रियों की चुप्पी ने भी कई सवाल खड़े कर दिए।

इन विवादों के साथ-साथ, मुख्यमंत्री पर एक बड़ा आरोप रघुबर दास ने लगाया, जिन्होंने उन पर पद पर रहते हुए, अनगड़ा (रांची) में खुद के नाम पर ही खनन पट्टा अलॉट करवाने का आरोप लगाते हुए, इसे “ऑफिस ऑफ प्रॉफिट” के तहत गंभीर मामला करार देते हुए राज्यपाल से उन्हें बर्खास्त करने की मांग की। यह मामला तब सीरियस हो गया, जब राज्यपाल ने इस मामले पर चुनाव आयोग का मंतव्य मांगा।

चुनाव आयोग ने भी तेजी दिखाते हुए जिस प्रकार विमान से मैसेंजर भेज कर उसी शाम 7 बजे मुख्यमंत्री कार्यालय में नोटिस को एक्सेप्ट करवाया, उस से उनकी मंशा का अंदेशा होता है। जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 9ए के उल्लंघन के लिए जारी इस नोटिस का जबाब 10 मई तक दिया जाना है। यह धारा सरकारी अनुबंधों के लिए सदन से अयोग्यता से संबंधित है। ज्ञात हो कि मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा का कार्यकाल 14 मई को खत्म हो रहा है तो यह माना जा सकता है कि उस से पहले वे अपना मंतव्य राज्यपाल को दे देंगे।

एक ओर मुख्यमंत्री कार्यालय चुनाव आयोग को जबाब देने की तैयारी कर रहा है, इस से संबंधित पुराने मामलों के रेफरेंस तलाशे जा रहे हैं, वहीं कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार अगर चुनाव आयोग का फैसला मुख्यमंत्री के खिलाफ आता है, तो उनकी टीम सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगी। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और उसका निर्णय तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन अगर इस वजह से सरकार गिरती है तो उसे संभालना आसान नहीं होगा। हेमंत और बसंत सोरेन की अनुपस्थिति में, लोबिन हेम्ब्रम व सीता सोरेन समेत कई पार्टी विरोधी स्वरों को साधना काफी मुश्किल हो जाएगा।
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चूंकि भाजपा ने मुख्यमंत्री पर पत्नी के नाम पर प्लॉट अलॉट करवाने का आरोप लगवाया है, और उनके भाई बसंत सोरेन समेत कुछ अन्य लोगों पर भी खनन से संबंधित आरोप लगे हुए हैं, तो इस परिस्थिति में, पद गंवाने के बाद, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पास अगले मुख्यमंत्री के तौर पर काफी सीमित विकल्प हैं। झामुमो के पास सर्व-सम्मत नेता के तौर पर शिबू सोरेन का नाम है लेकिन उनकी बढ़ती उम्र और बिगड़ती सेहत की वजह से झामुमो को अन्य विकल्प तलाशने होंगे।

अगर झामुमो को लगता है कि इस मामले में संभावित कार्यवाही से सरकार अस्थिर हो सकती है तो उन्हें पहले से ही तैयारी करनी चाहिए। अगर उनके पास कोई अन्य विकल्प है तो चुनाव आयोग के निर्णय से पहले उन्हें शपथ दिलवा कर बहुमत साबित कर लेना पार्टी को भविष्य के अनिश्चित दौर से बचा कर, सत्ता पर काबिज रखेगा। इस प्रक्रिया के दौरान, सदन में मौजूदा नेतृत्व की मौजूदगी सदस्यों को अनुशासित रखेगी, तथा सहयोगी दलों पर भी दबाव बनाएगी। सही समय पर लिया गया यह फैसला चुनाव आयोग के दबाव और विपक्ष के वार को खाली कर सकता है। बाद में, इस मामले के खत्म होने पर, हेमंत सोरेन दोबारा मुख्यमंत्री के तौर पर पद ग्रहण कर सकते हैं। लेकिन, क्या झारखंड मुक्ति मोर्चा इसके लिए तैयार है?

(6 मई 2022 को चमकता आईना में प्रकाशित)

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