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आदिवासी किसानों की आजीविका का साधन बन रहा पपीता

रांची। झारखंड का मौसम और मिट्टी पपीते के लिए बेहतर मानी जाती है। यही कारण है कि अब अधिक संख्या में यहां के पपीता की खेती करने लगे हैं। जबकि कुछ दशक पहले तक लोगों के घरों में सिर्फ एक या दो पपीते के पेड़ होते थे, जिसके फल का उपयोग परिवार में सब्जी और फल के तौर पर किया जाता था, पर अब झारखंड में इसकी खेती शुरू हो गयी है। व्यावसायिक तौर पर किसान इसकी खेती कर रहे हैं। झारखंड में अमूमन घरों के बैकयार्ड में पपीते की पेड़ दिख जाते है, पर जैसे-जैसे इसकी मांग बढ़ रही है पपीता मे घर के बैकयार्ड से लेकर बड़े-बड़े खेतों में अपनी जगह बना ली है।

झारखंड के आदिवासी बहुल इलाकों में पपीता की आधुनिक खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से गुमला, लोहरदगा और रांची जिले में आईसीएआर-आरसीईआर के पहाड़ी और पठारी क्षेत्र के कृषि प्रणाली अनुसंधान केंद्र, रांची ने 2018-19 के दौरान आधुनिक तरीके से पपीता की खेती की। जिसे किसानों को दिखाया गया। आईसीएआर द्वारा पपीता की आधुनिक खेती का यह ट्रायल अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की जनजातीय उपयोजना के तहत किया गया।

एक्सपोजर विजिट के दौरान मिला प्रशिक्षण
ग्रामीणों को कृषि और कृषि संबंद्ध कार्यों के जरिये रोजगार से जोड़ने वाली गैर सरकारी संस्था प्रदान ने किसानों को पपीते की खेती के लिए आगे लाया। किसानों को एक्सपोजर विजिट के लिए कई केंद्रों में ले जाया गया, साथ ही बड़े पैमाने पर आठ फील्ड ट्रेनिंग का आयोजन किया गया। इस दौरान 1300 आदिवासी किसानों को पपीता की खेती करने से संबंधित प्रशिक्षण दिया गया।

600 किसानों ने शुरू की पपीते की खेती
प्रशिक्षण पाने के बाद लगभग 600 आदिवासी किसानों ने पपीते की खेती शुरू की। किसानों के बीच उन्नत पपीते की किस्म रेड लेडी और एनएससी नस्ल के 30,000 पौधे वितरित किए गए। पपीता की यह दोनें किस्में थोड़ी कठोर होती है इसके कारण इसमें अन्य किस्मों की अपेक्षा कीट और रोग का प्रभाव काफी कम हो जाता है। इसलिए किसान इसे अपने घर के बैकयार्ड में ही लगा रहे थे। हालांकि पपीते की खेती में ब्रीडिंग के कारणों से 50 से 60 फीसदी फल ही आ पा रहे थे। इसके बाद किसानों ने इस समस्या का स्थानीय समाधान निकाला और एक गड्ढे में तीन पौधे रोपना और नर पौधों को फूल आने के बाद हटाना” पर तकनीकी प्रदर्शन किया गया। इस तरह से इस विधि को अपनाने के जरिये 80 फीसदी–90 फीसदी फल देने वाले पौधे दिए।

किसानों को दी गयी सूक्ष्म तत्वों को इस्तेमाल की ट्रेनिंग
किसान हेल्पलाइन के मुताबिक लोहरदगा जिले की महिला किसान रूपवंती ने बताया कि प्रशिक्षण के दौरान मिली जानकारी के अनुसार उन्होंने 200 वर्ग मीटर में रांची लोकल किस्म के 45 पपीते के पौधे लगाए थे। इसमें से 38 पौधों से उन्हें फल मिला, रूपवंती ने कच्चा और पक्का पपीता बेचकर कुल 15,950 रुपए की कमाई की। यह कमाई उन्होंने एक साल में हासिल की। प्रशिक्षण के दौरान किसानों को सूक्ष्म पोषक तत्वों के इस्तेमाल की जानकारी भी दी गयी थी। उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान इसका इस्तेमाल करते हैं। साथ ही सभी किसान कीट और रोग के लिए जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। पपीते की खेती में आधुनिक के इस्तेमाल का फायदा किसानों को हुई। उनकी आय में बढ़ोतरी हुई।

प्रगतिशील किसानों को दिया गया नर्सरी का प्रशिक्षण
पपीता की खेती की ओर किसानों के बढ़ते रुझान और आदिवासी किसानों के बीच उद्यमिता विकास के अवसर को देखते हुए गुमला और लोहरदगा जिले के लगभग 16 प्रगतिशील किसानों को पपीता की नर्सरी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। इसके अलावा ट्रेनिंग प्राप्त करने वाले किसानों को फलों पर आईसीएआर-एआईसीआरपी की जनजातीय उप योजना के तहत पॉली बैग और पपीते के बीज जैसे आवश्यक इनपुट प्रदान किए गए थे। प्रशिक्षण पाने के बाद उन किसानो ने अप्रैल-मई, 2020 के महीनों के दौरान पपीते के 28,000 पौधे तैयार किया। इसे लोहरदगा और गुमला जिलों के लगभग 1,000 किसानों के बीच बेचा गया।

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